हरिद्वार। मनोज खन्ना- श्राद्ध यानि पितरों को श्रद्धा से किया गया दान को श्राद्ध कहा जाता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 20 सितंबर से प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर तक मनाए जाएंगे। पितृपक्ष में मानव मृत आत्माओ को जल, तिल, जौ ,चावल और सफेद पुष्प से पितरो को जलांजलि दी जाती है। श्राद्ध तिथि के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के साथ ही गाय और कौआ के लिए भी मिनसा जाता है जिस से पितृ शांत होते है और अपने वन्सजो को आशीर्वाद प्रदान करते है। पितृ पक्ष 16 दिन का होता है जो कि कल से प्रारंभ हो रहा है, वैसे श्राद्ध को मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है और पितृ पक्ष के दौरान किये जाने वाले श्राद्ध का विशेष असर पड़ता है। पितृ पक्ष का श्राद्ध सभी मृत पूर्वजों के लिए किया जाता है ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी पितृ यमलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाते हैं। इसीलिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है। इसके लिए हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर वो तीर्थ स्थान माना जाता है जो पितृ तीर्थ और मुक्ति का बड़ा केंद्र हैं। हरिद्वार में तीर्थ करने और गंगा स्नान कर पुण्य कमाने के अलावा दुनिया भर से लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए भी यहां आते हैं। जानकारी देते हो पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि पितृ पक्ष में पितरों का उनके देहान्त की तिथि के दिन श्राद्ध करना जरूरी माना गया है मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध वह भी श्रद्धापूर्वक यदि नही किया जाये तो इससे पित्र नाराज हो जाते है और उनके श्राप से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है। जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर की सुख-शांति खत्म हो जाती है और तरह-तरह की समस्याएं आने लगती है ,यानि व्यक्ति का जीवन कष्टों में घिरने लगता है। पितृ दोष के निवारण के लिए देश में नारायणी शिला मंदिर को दूसरे नम्बर पर सबसे खास स्थान माना जाता है इसलिए पितृ दोष की शांति के लिए पितृ पक्ष सबसे उपयुक्त दिन होते है इन दिनों में पित्रों को प्रसन्न कर पितृ दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। हरि का द्वार यानी हरिद्वार धर्मनगरी हरिद्वार में यदि लोग गंगा में ङुबकी लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के पाप धोने आते है तो हरिद्वार लोग अपने पित्रों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना लेकर भी आते है, हरिद्वार में गंगा जहाँ सबके पाप धो देती है वहीँ वह मृतकों की आत्माओं को मोक्ष भी प्रदान करती है। हरिद्वार में आकर श्रद्दा पूर्वक अपने पित्रों का पिँङदान व गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है, लोगो की मान्यता है कि श्राद्ध करने से उनके पित्र प्रसन्न होते हैं और उनके ऊपर सुख-शांति और अपने आशीर्वाद की वर्षा करते है।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा कि वर्तमा
Comments
Post a Comment