सनातन धर्म में भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं और भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष प्रकाश पुन्ज के रूप में भी माना गया है
हरिद्वार। स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि गुरूवार को इस सदी का सबसे बड़ा ग्रहणकाल था। सनातन धर्म में भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं और भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष प्रकाश पुन्ज के रूप में भी माना गया है।'धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जब समुद्र मंथन हुआ तो देवी देवताओं और असुरों ने इसमें भाग लिया। समुद्र मंथन से एक एक कर कई चीजें निकलीं जोकि देवताओं और असुरों में बांट ली गईं। लेकिन जब समुद्र से अमृत कलश निकला तो देवताओं और असुरों में इसे लेने के लिए होड़ मच गयी। ऐसे में भगवान विष्णु ने मोहिनी का छद्म रूप धारण किया। असुर उनके इस रूप पर मोहित हो गए। मोहिनी के रूप में भगवान विष्णु ने असुरों को सोमरस (अमृत) का पान करवाया। लेकिन राहू नामक एक असुर ने भी धोखे से देवताओं के भेष में अमृतपान कर लिया। जब भगवान विष्णु को उसकी चाल समझ में आई तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन चूंकि वो अमृत पान कर चुका था तो उसकी मृत्यु नहीं हुई। लेकिन उसके शरीर के दो हिस्से हो गए जोकि राहू और केतु कहलाये। इसके बाद से ही राहू और सूर्य के बीच दुश्मनी ठन गई। यही वजह है कि आज भी जब राहू सूर्य को ग्रसता है तो सूर्य ग्रहण लगता है। स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि सूर्य ग्रहण का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। ग्रहण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं। शास्त्रोक्त तरीके ग्रहण के प्रभाव को कम करने के लिए ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मां दक्षिण काली व भगवान शिव की कृपा राष्ट्र पर बनी रहे इसके लिए श्री सिद्ध पीठ दक्षिण काली मंदिर चंडी घाट पर बापू गोपालानन्द वेद विद्यालय के आचार्य पवन दत्त मिश्र के तत्वावधान में सभी विद्यार्थियों ने राष्ट्र हित हेतु भगवान सूर्य की उपासना की। इस दौरान आचार्य प्रमोद पाण्डे, आचार्य शिवा, स्वामी प्रबोधानंद गिरी, स्वामी सत्यव्रतानन्द, श्रीमहंत साधनानन्द, महंत प्रेमानन्द आदि ने भी राष्ट्र के कल्याण व खुशहाली के लिए मां गंगा से प्रार्थना की।
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