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जीवन के आनन्द को प्राप्त करने का माध्यम आध्यात्मिकता ही है-प्रो0रूप किशोर शास्त्री

हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय ‘अध्यात्मिकता एवं मानसिक स्वास्थ्य विषय पर वेबिनार का आयोजन सीनेट हाल में किया गया। वेबिनार के मुख्य अतिथि एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि जीवन ने भौतिक और आध्यात्मिक भागों को अलग देखने की जरूरत नहीं है। अन्तर केवल मानसिक दृष्टिकोण का है। आध्यात्मिकता को समझने के लिए जीवन जीना चाहिए। जीवन के आनन्द को प्राप्त करने का माध्यम आध्यात्मिकता हो सकता है। पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने कहा कि आध्यात्मिकता का स्वाद जो चख लेता है वह बाह्य आडम्बरों से मुक्त हो जाता है। आध्यात्मिकता हमें आन्तरिक शक्तियों का अहसास कराकर बाह्य व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाती है। जो व्यक्ति प्रभु की शरण में चला जाता है उसके अन्दर आध्यात्मिकता की स्फूर्ति निरन्तर बढ़ने लगती है। और व्यक्ति का चिन्तन सकारात्मक हो जाता है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा. चिन्मया पण्डया ने कहा कि जीवन में परोपकार करना अत्यन्त आवश्यक है। सच्चा अध्यात्म परोपकार है। परोपकार के बिना व्यक्ति का कल्याण नहीं हो सकता, इसलिए परोपकार के बिना व्यक्ति को अपने समझने की और क्रिया करने की आवश्यकता है।इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डा. अमृता ने कहा कि जिन व्यक्तियों के अन्दर एकान्त की भावना पैदा नहीं होगी वह सचेतन नहीं हो सकते। चेतना का नाम की अध्यात्मक है। अध्यात्म कोई शब्द या कथा नहीं है। जिसे सुनकर अपने अन्दर उतारा जा सके। अध्यात्म तो एहसास है जिसे अपने अन्दर खोजना होता है। मेरठ विश्वविद्यालय के प्रो. विगनेश त्यागी ने कहा कि आध्यात्मिक एक जीवन कला है जो इसे जीना शुरू करता है उसके अन्दर मंत्रों व ध्यान का ज्ञान अपने आप फूटने लगता है। व्यक्ति समाज से विमुख हो जाता है। सच्चा आध्यात्मिक ध्यान की प्रक्रिया से ही निकलता है। इसलिए व्यक्ति को आध्यात्मिक होने के साथ-साथ कर्तव्यशील भी होना चाहिए।वेबिनार में संयोजक प्रो. प्रभात कुमार, प्रो. एसके श्रीवास्तव, प्रो. राकेश शर्मा, प्रो. निपूर, डा. हिमांशु पण्डित, डा. दीलिपि कुशवाहा, गौरव सिंह, डा. सत्येन्द्र सिंह, डा. प्रकर्ष आदि ने प्रतिभाग किया।


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