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संस्थान विद्यार्थियों को संयम, संस्कारी व आत्मनिर्भर बनाएगा

हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या के क्षेत्र में अग्रणी विद्वान कुलपति प्रो0 रूपकिशोर शास्त्री की प्रेरणा से ‘‘प्राच्य विद्या संरक्षण न्यास’’ की स्थापना की गयी। इस न्यास का उद्देश्य वैदिक साहित्य दर्शन प्राचीन ज्ञान-प्रज्ञान से परिपूर्ण पाण्डुलिपियों के अध्ययन में रत विद्यार्थियों का हर प्रकार से सहयोग करना होगा। संस्थान विद्यार्थियों को संयम, संस्कारी व आत्मनिर्भर बनाएगा। इस न्यास के सहयोगी डा0 दीनदयाल, डा0 श्वेतांक आर्य, डा0 सुहास एवं ई0 मधुसूदन आर्य इत्यादि होंगे।  कुलपति प्रो0 रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में संस्कारों का विशेष महत्व है। वैदिक संस्कृति व्यक्ति को संस्कारवान बनाती है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में वैदिक संस्कृति को अपनाते हुए सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। आज हम जिस युग में साँस ले रहे हैं यह वह संघर्ष, स्वार्थ, छल,प्रतिस्पर्धा तथा किसी तरह अपने अस्तित्व को बचाये रखने का युग है। नैतिकता का निरन्तर ह्रास हो रहा है, साथ ही मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं की भी कोई कीमत नहीं रह गयी है, हम सभी भौतिकता के कीचड़ में इस प्रकार से ओत-प्रोत हैं कि, आँख उठाकर देखने, सोचने और समझने का समय ही नहीं है। क्षणमात्र के लिए यदि हम इसका चिन्तन करें कि,यह क्या हो रहा है ? हम किस तरफ बढ़ रहे हैं ? क्या हमारे जीवन का यही लक्ष्य है ? और क्या हमारे जीवन की पूर्णता इसी में है ? डॉ दीन दयाल ने कहा वेदों में मनुष्य जीवन के सभी पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। वेदों के आधार पर ही हमारे ऋषियों ने 16 संस्कारों की रचना की है। बालक व बालिका के जन्म से पहले ही सुसंस्कारों से युक्त सन्तान के लिए माता-पिता को तैयारी करनी होती है। संस्कारों का आरम्भ अन्य मतो व मजहबों की तरह शिशु के जन्म लेने से आरम्भ न होकर गर्भाधान संस्कार व उससे भी पूर्व किया जाता है। अच्छी सन्तान के लिए सन्तानोत्पत्ति से पूर्व माता-पिता का ब्रह्मचर्य को धारण करना कर्तव्य होता है। वैदिक संस्कारों से सन्तान को सुभूषित करने के लिए हमारे यहां गुरूकुलीय शिक्षा पद्धति विकसित व प्रचलित की गई थी। गुरूकुलीय शिक्षा पद्धति की एक विशेषता यह है कि वैदिक व आर्ष गुरूकुलों में आर्ष व्याकरण, चारों वेदों व इतर शास्त्रों के ज्ञानियों द्वारा अध्ययन कराया जाता है। भाषा संस्कृत होती है जिसमें हमारा सारा प्राचीन साहित्य व शास्त्र विद्यमान हैं। डॉ श्वेतांक आर्य ने कहा कि आजकल के नवीन विषयों जिसमें एक या अधिक भाषाओं का ज्ञान, विज्ञान, गणित, कला, समाज, राजनीति, अर्थशास्त्र, इलेक्ट्रोनिक्स, कम्प्यूटर, इंजीनियरिंग, चिकित्सा व अन्य सभी प्रकार के आधुनिक ज्ञान व विज्ञान आदि विषयों के अध्ययन की बात है तो हमें वैदिक गुरूकुलों में इन विषयों के अध्ययन में कहीं कोई कठिनाई दिखाई नहीं देती। कठिनाई केवल गुरूकुलों में साधनों के अभाव के कारण हैं जहां सरकारी सहायता का न दिया जाना है। डॉ सुहास ने कहा कि वेद, ब्राह्मण और उपनिषद् इस समय के विज्ञान के विषय में पर्याप्त जानकारी देते हैं। गणित की सभी शाखाओं को सामान्यतः गणित नाम से ही जाना जाता था जिसमें अंकगणित, रेखागणित, बीजगणित, खगोल विद्या और ज्योतिष सम्मिलित थे, वैदिक काल के लोग त्रिभुज के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना जानते थे। वे वृत्त के क्षेत्रफलों के वर्गों के योग और अंतर के बराबर का वर्ग भी हबनाना जानते थे, शून्य का ज्ञान था और इसी कारण बड़ी संख्याएँ दर्ज की जा सकीं, इसके साथ ही प्रत्येक अंक के स्थानीयमान और मूल मान की जानकारी भी थी। उन्हें घन, घनमूल, वर्ग और वर्गमूल की जानकारी थी और उनका उपयोग किया जाता था, वैदिक काल में खगोल विद्या अत्यधिक विकसित थी, वे आकाशीय पिंडों की गति के विषय में जानते थे और विभिन्न समय पर उनकी स्थिति की गणना भी करते थे। इससे उन्हें सही पंचांग बनाने तथा सूर्य एवं चंद्रग्रहण का समय बताने में सहायता मिलती थी। वे यह जानते थे कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। चाँद, पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमता है, उन्होंने पिंडों के घूर्णन का समय ज्ञात करने तथा आकाशिय पिंडों के बीच की दूरियाँ मापने के प्रयास भी किए। इंजी० मधुसूदन आर्य ने कहा कि संसार में वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों के प्रचार की आज सबसे अधिक आवश्यकता है जिससे प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्तव्य का ज्ञान हो सके और उसे वह ज्ञान पूर्वक कुशलता से सम्पन्न करें। यही संस्कृति है। आज के परिवेश में मानवदृजीवन का लक्ष्य मात्र, ‘अर्थ व काम‘ बनकर रह गया है। इसी के परिणामस्वरूप आज का मनुष्य आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होने के उपरान्त भी मानसिक वेदनाओं से पीड़ित है। इसी क्रम में वह मूल ब्यवस्था से दूर होता जा रहा है। जिससे समाज विखंडित होता जा रहा है । ये हालात मानव समाज के लिये खतरे का संकेत है 


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