हरिद्वार। पूर्व विधायक अम्बरीष कुमार ने दिल्ली दंगों में हुई गिरफ्तारी को लेकर कहा कि दिल्ली दंगों की जांच निष्पक्ष, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण नहीं है। जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बुद्धिजीवी हैं और सरकार से सवाल पूछते हैं उनको लक्ष्य बनाया जा रहा है। उमर खालिद बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता है। उसकी गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार है। जो सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग थे। जिन्होंने विद्वेष और संप्रदायिकता भड़काने वाले भाषण दिए उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऐसा लगता है कि जांच दिल्ली दंगों की नहीं अपितु नागरिकता संशोधन कानून एनपीआर और नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीयता नागरिकता के विरोध शांतिपूर्ण अहिंसक प्रदर्शन के विरोध में हो रही है। यह प्रदर्शनकारी शांत बैठकर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग कर रहे थे। धरना स्थल पर महात्मा गांधी और अंबेडकर के कटआउट लगे थे। यह जांच जो आरएसएस और बीजेपी की कहानी है उसके आधार पर हो रही है और उसी के आधार पर गिरफ्तारियां हो रही है। इसी संबंध में डीजी स्तर के 9 अवकाश प्राप्त अधिकारियों ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर कहा है कि जांच पूर्वाग्रहों से ग्रसित है और दिल्ली पुलिस की यह छवि बन रही है कि जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं है तथा अल्पसंख्यको को लक्ष्य बनाया जा रहा है। जबकि जिनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचा और जो मरने वाले थे। उनमें अधिकांश अल्पसंख्यक थे। यह भी जांच नहीं हो रही है कि दंगों में हथियारबंद कौन लोग थे। इस संबंध में प्रोफेसर अपूर्वानंद, जयती घोष आदि 36 ने भी वक्तव्य जारी कर उमर खालिद की गिरफ्तारी की निंदा की है। एक रिटायर आईएएस अधिकारी कनां गोपीनाथन ने भी इस गिरफ्तारी पर सवाल उठाए। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर ने वक्तव्य जारी कर कहा कि सरकार सख्ती से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा रही है। अचानक देशद्रोह के मुकदमों में जो आम नागरिक के विरुद्ध है जो कुछ बोलते हैं और उनके विरूद्ध देशद्रोह और यूएपीए लगा दिया जाता है। अम्बरीष कुमार ने कहा कि कि दिल्ली पुलिस राजनीतिक संप्रदायिक आधारों पर जांच चलाकर अपने अधिकारों को बर्बाद ना करें।
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