हरिद्वार। पूर्व विधायक अम्बरीष कुमार ने कहा कि सरकार निजीकरण में एक और अध्याय जोड़ने की तैयारी कर रही है। एयरपोर्ट, रेलवे, विद्युत वितरण, हाईवे के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया जारी है। नए कृषि कानूनों के जरिए कृषि भूमि भी निजी क्षेत्रों को सौंपने का काम शुरू हो चुका है। इसी के साथ साथ रिजर्व बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप में कॉर्पोरेट घरानों को बैंक खोलने की इजाजत के संबंध में जितने अर्थशास्त्रियों की राय ली गयी एक को छोड़कर सब ने इसके विरूद्ध राय दी। इनमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस कदम से कॉर्पोरेट घराने बैंक की पूंजी का उपयोग अपनी सहायक संस्थाओं के लिए और ऐसी गतिविधियों के लिए जिनको सार्वजनिक बैंक क्षेत्रों से ऋण मिलना संभव नहीं है को भी इन बैंकों से ऋण उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन बैंकों की कामकाज की समीक्षा के लिए कोई नियामक बनाया जाएगा तो अपनी राजनीति पहुंचकर के कारण यह उस को प्रभावित करने में सफल होंगे। भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र की गवर्नेंस कमजोर इन सब तथ्यों को दृष्टिगत करते हुए उन विशेषज्ञयो ने इसके विरूद्ध राय दी थी। 1969 से पहले अधिकांश बैंक निजी क्षेत्र में थे। परंतु राष्ट्रीय हित को देखते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, जिससे आम आदमी की पहुंच बैंकों तक बनी और देश विकास के रास्ते पर आगे चला तथा गरीबी दूर करने के अनेकों कार्यक्रम बैंकों द्वारा चले। आज भाजपा की सरकार ने कृषि भूमि, उद्योग, परिवहन, सेवा क्षेत्र और अब बैंक सब कुछ कॉर्पोरेट घरानों को सौंप रही है और सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से कॉर्पोरेट घराने ही चला रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी का समझना चाहिए कि भारत का किसान, मजदूर, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी इसे स्वीकार नहीं करेगा।
हरिद्वार। पूर्व विधायक अम्बरीष कुमार ने कहा कि सरकार निजीकरण में एक और अध्याय जोड़ने की तैयारी कर रही है। एयरपोर्ट, रेलवे, विद्युत वितरण, हाईवे के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया जारी है। नए कृषि कानूनों के जरिए कृषि भूमि भी निजी क्षेत्रों को सौंपने का काम शुरू हो चुका है। इसी के साथ साथ रिजर्व बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप में कॉर्पोरेट घरानों को बैंक खोलने की इजाजत के संबंध में जितने अर्थशास्त्रियों की राय ली गयी एक को छोड़कर सब ने इसके विरूद्ध राय दी। इनमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस कदम से कॉर्पोरेट घराने बैंक की पूंजी का उपयोग अपनी सहायक संस्थाओं के लिए और ऐसी गतिविधियों के लिए जिनको सार्वजनिक बैंक क्षेत्रों से ऋण मिलना संभव नहीं है को भी इन बैंकों से ऋण उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन बैंकों की कामकाज की समीक्षा के लिए कोई नियामक बनाया जाएगा तो अपनी राजनीति पहुंचकर के कारण यह उस को प्रभावित करने में सफल होंगे। भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र की गवर्नेंस कमजोर इन सब तथ्यों को दृष्टिगत करते हुए उन विशेषज्ञयो ने इसके विरूद्ध राय दी थी। 1969 से पहले अधिकांश बैंक निजी क्षेत्र में थे। परंतु राष्ट्रीय हित को देखते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, जिससे आम आदमी की पहुंच बैंकों तक बनी और देश विकास के रास्ते पर आगे चला तथा गरीबी दूर करने के अनेकों कार्यक्रम बैंकों द्वारा चले। आज भाजपा की सरकार ने कृषि भूमि, उद्योग, परिवहन, सेवा क्षेत्र और अब बैंक सब कुछ कॉर्पोरेट घरानों को सौंप रही है और सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से कॉर्पोरेट घराने ही चला रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी का समझना चाहिए कि भारत का किसान, मजदूर, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी इसे स्वीकार नहीं करेगा।
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