हरिद्वार । अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर और सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर के पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने शुक्रवार को अपने जन्मदिवस के मौके पर पूरे विधि-विधान और वरिष्ठ संत-महात्माओं की पावन उपस्थिति में श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा के संन्यासी के तौर पर जगदगुरु राजराजेश्वराश्रम से संन्यास दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने संन्यास दीक्षा के लिए गुरुवार से ही विधान आरंभ कर दिए थे। विजयाहोम समेत सभी विधान पूरे कर अब वह ब्रह्मचारी से संन्यासी बन गए। नए स्वरूप में उनका नया नाम कैलाशानंद ब्रह्मचारी से स्वामी कैलाशांनद गिरि हो गया है। अब उनकी पहचान अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर के तौर पर न होकर निरंजनी अखाड़े के संन्यासी के तौर पर होगी। अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर पद की पदवी उनके निरंजनी अखाड़े का संन्यासी बनते ही स्वतः समाप्त हो गई। शुक्रवार को उन्होंने अपना 44वां जन्मदिन संन्यासी दिवस के तौर पर मनाया। कनखल स्थित आद्यशक्ति पीठ आश्रम में जगतगुरु राजराजेश्वराश्रम के सानिध्य में कैलाशानंद गिरि ने जन्मदिवस और संन्यास दिवस मनाते हुए पूजा-अर्चना की। इस मौके पर जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम ने कहा कि कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने वर्ष 2008 में मुझसे दीक्षा लेने के लिए कहा था। उस समय उन्हें मेरा जवाब था कि समय आने पर ही यह सब कुछ होगा। आज वह दिन भी आ गया। कैलाशानंद के जन्मदिवस के साथ ही उनका संन्यास का पहला दिन भी है। श्रीपंचदशनाम निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविद्रपुरी ने बताया कि शुक्रवार तड़के छह बजे संन्यास दीक्षा के निमित्त स्वामी कैलाशानंद ने पिडदान-तर्पण समेत सभी परंपराएं पूरी की। इस मौके पर कैलाशानंद गिरि ने कहा कि संन्यास लेने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि महाराज, महामंत्री श्रीमहंत हरीगिरि महाराज और श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविद्रपुरी महाराज ने मुझे प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि अब वह 45वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं। आज मेरे जन्मदिवस के साथ ही संन्यास का पहला दिन और संन्यास परंपरा के अनुसार नया जन्म भी है, क्योंकि संन्यास दीक्षा के साथ ही पहले के जन्म और कर्म का वास्ता टूट जाता है और संन्यासी नए स्वरूप में संसार में अपनी पहचान बनाता है। इसलिए अग्नि अखाड़े के बाद अब मेरा जीवन श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े को समर्पित रहेगा। पर, जब भी अग्नि अखाड़े को मेरी जरूरत होगी तो मैं हर सेवा करने के लिए तत्पर रहूंगा। इस अवसर पर श्रीमहंत रामरतन गिरि महाराज, महंत राधेश्याम गिरि महाराज, महंत मनीष भारती महाराज, महंत नरेश गिरि महाराज, महंत सुखदेव पुरी महाराज, महंत नीलकंठ गिरि महाराज, महंत गंगा गिरि महाराज, रत्नगिरी महाराज, महंत अनुज पुरी महाराज, महंत राजेंद्र भारती महाराज आदि संत-महंत उपस्थित थे।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा कि वर्तमा
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