हरिद्वार। मानव अधिकार संरक्षण समिति उत्तराखंड पश्चिम की नीलम रावत ने जानकारी देते हुये बताया कि हमारे देश भारत में 6 ऋतुएँ होती हैं जिनके नाम क्रमशः बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु अर्थात पतझड़ हैं, जिनमें से बसंत ऋतु का मौसम सबसे ज्यादा सुहावना होता है और इसीलिए बसंत ऋतु को ऋतुओ का राजा यानी ऋतुराज भी कहा जाता है क्योंकि इस मौसम में हर जगह धरती पर हरियाली होती है, इसी मौसम में गेहूं और सरसों की खेती की जाती है और ऐसा लगता है कि गेहू के खेतों ने हरे रंग की साड़ी पहनी हो और दूसरी तरफ पीले सरसों के खेत सोने जैसे लगते है मानो हर जगह सोना बिखेर दिया गया हो। बसंत पंचमी को माँ सरस्वती का जन्मदिवस भी कहा जाता है, इसलिये इसे माँ सरस्वती के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते है। इसके पीछे एक छोटी सी कहानी है- “हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी तब हर तरफ शांति व्याप्त थी कही कोई ध्वनि नहीं सुनाई पड़ रही थी. उस समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल लेकर धरती पर छिड़का जिससे एक अदभुत शक्ति एवं चतुर्भुज हाथों वाली नारी का अवतार हुआ, जिनके हाथों में वीणा, माला, पुस्तक इत्यादि थी और जब उन्होंने ब्रह्माजी के कहने पर वीणा बजाई तो हर तरफ संसार मे ध्वनि फैल गई, तब ब्रह्माजी ने वीणा की देवी को सरस्वती के नाम से पुकारा जोकि ज्ञान और संगीत की भी देवी कहलाती है. इसी कारण इस दिन को माँ सरस्वती की उत्पत्ति के रूप मे मनाया जाता है। इस दिन को बच्चे के जीवन में एक नई शुरुआत के रूप में भी मनाते है। परंपरागत रूप से बच्चों को इस दिन पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है क्योंकि इस दिन को ज्ञान की देवी की पूजा के साथ एक नई शुररूआत मानी जाती है। पीले रंग का इस दिन काफी महत्व होता है। बसंत का रंग होने के कारण पीले रंग को ‘बसंती‘ रंग भी कहा जाता है। यह रंग समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशीर्वाद का प्रतीक है। इस कारण लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग में पारंपरिक व्यंजनों को बनातें है। लोककथाओं के अनुसार, धन और समृद्धि को लाने के लिए बसंत पंचमी पर सांप को दूध पिलाया जाता है, पतंग उड़ाना जोकि भारत मे एक लोकप्रिय खेल है, बसंत पंचमी के त्योहार के साथ जुड़ा हुआ है। खास तौर पर पंजाब में पतंग उड़ाने की परंपरा का काफी महत्व है।
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