हरिद्वार। राष्ट्रीय परशुराम परिषद के संस्थापक संरक्षक एवं श्रम कल्याण परिषद उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष राज्यमंत्री सुनील भराला ने कहा कि महाकुम्भ में 24 व 25 अप्रैल को अखिल भारतीय विद्वत सम्मेलन में भगवान परशुराम के जन्मस्थान निर्धारण के सम्बन्ध में घोषणा की जायेगी। उन्होने कहा कि भगवान परशुराम ने कहा शिक्षा ग्रहण किया था और उनकी विद्यास्थली,कर्मस्थली,युद्वस्थली का निर्धारण भी इसी सम्मलेन में किया जायेगा। उत्तरी हरिद्वार स्थित एक आश्रम में पत्रकारों से वार्ता करते हुए श्री भराला ने कहा कि उक्त सम्मेलन में भगवान परशुराम की जन्म स्थली को लेकर विद्वानों में चल रहे मतभेद को दूर करते हुए उनकी वास्तविक जन्मस्थली की घोषणा भी की जायेगी। उन्होने कहा कि एक तरफ मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वर्तमान में यूपी के बलिया के खैराडीह में हुआ था,हलांकि दूसरी मान्यता यह हे कि भगवान परशुराम का जन्म इण्डौर के पास महू से कुछ ही दूरी पर स्थित जानापाव की पहाड़ी पर हुआ था। वही तीसरी मान्यता है कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गाॅव में उनका जन्म हुआ था,जबकि कुछ मान्यता है कि उनका जन्म यूपी के शाहजहांपुर के जलालाबाद स्थित जगदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित हजारों साल पुराने मन्दिर को उनकी जन्मस्थली है। उन्होने बताया कि 66 विद्वानो की टीम इस सम्बन्ध में जानकारी जुटाने में जुटी है। सम्मेलन में उनकी शिक्षा और युद्वस्थली के बारे में भी जानकारी दी जायेगी। उन्होने कहा कि हिन्दू समाज में यह भ्रम फेलाया जा रहा है कि भगवान परशुराम सिर्फ ब्राहणों के देवता है। जबकि वास्तविकता यह है कि वे सभी वर्गो के देवता है। यह झूठा प्रचार भी किया गया कि भगवान परशुराम ने कई बार क्षत्रियों का संहार किया,जबकि बास्तविकता यह है कि उन्होने क्षत्रियों पर नही बल्कि आततायियों पर हमला कर उनका नाश किया था। वार्ता के दौरान मौजूद परिषद के केन्द्रीय मंत्री राधाकृष्ण मनोदी ने कहा कि भगवान परशुराम से जुड़ी सभी भ्रांतियों का निसतारण उक्त दो दिवसीय सम्मेलन में किया जायेगा।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा कि वर्तमा
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