हरिद्वार। कोरोना महामारी के कारण अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद् द्वारा पूरे देश में अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम जन्मोत्सव अपने अपने घरो में मनाया गया। उत्तराखण्ड में श्री भगवान परशुराम जन्मोत्सव अक्षय तृतीया के अवसर पर प्रदेश के सभी जनपद, ब्लॉक एवं ग्रामांे में वैदिक मन्त्रोच्चारण से विधि पूर्वक अपने घरों में हवन, पूजन एवं दीप प्रज्ज्वलित कर मनाया। परिषद के प्रदेश संयोजक पं. बालकृष्ण शास्त्री, प्रदेश अध्यक्ष पं. मनोज गौतम ने कनखल स्थित प्रदेश कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से भगवान परशुराम जी के चित्र पर दीपार्चन व माल्यार्पण कर प्रार्थना की। कोरोना महामारी में जो भी स्त्री,पुरूष एवं बच्चे असमय ही काल के गाल में समा गये हैं ईश्वर उनके परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें और इस महामारी से विश्व के समस्त प्राणियों को निजात दिलायें। इस मौके पर परिषद के मार्गदर्शक एवं संरक्षक पं. जुगुल किशोर तिवारी (आईपीएस) ने सभी पदाधिकारियों को फेसबुक पेज के माध्यम से सन्देश देते हुए कहा कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया को जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। उन्होंने ने कहा कि भगवान परशुराम जी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था। महिष्मती के शासक है हयवंशी कार्तवीर्य के पुत्र सहस्त्रबाहु ने अपने आतिथ्य से अचंभित हो परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि से उनकी कामधेनु गाय माँगी। जमदग्नि के इन्कार करने पर उसके सैनिक बलपूर्वक कामधेनु को अपने साथ ले गये। उन्होंने कहा कि अधर्मी कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्रबाहु) की राजसत्ता को परशुरामजी ने छिन्न-भिन्न कर दिया। परिषद के प्रदेश संयोजक पं. बालकृष्ण शास्त्री ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार जो कलियुग में कल्कि अवतार होगा उनको गुरू के रूप में भगवान परशुराम जी ही शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा देंगे। इस बार सोशल कंैपेनिंग के माध्यम से ब्राह्मण एकता प्रदर्शन करने का आवाहन किया गया है एवं आपस में ब्राह्मणों ने मोबाइल से एक दूसरे को शुभकामनाएं दीं।
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