हरिद्वार। 2 अक्टूबर का दिन पूरे देश में अहिंसा और शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। और उत्तराखंड तो स्वयं शांति, समन्वय, समरसता एवं अहिंसा का द्योतक ही रहा है। उत्तराखंड राज्य के इतिहास के बारे में डॉक्टर हरिनारायण जोशी ने बताया कि आज के ही दिन 2 अक्टूबर 1994 में शांति और अहिंसा का अर्थ ही बदल गया। क्रुरता, हिंसा और अमानवीयता की सारी सीमाएं पार हो गईं। शांति के साथ राज्य प्राप्ति की मांग मनवाने के लिए उत्तराखंड के विभिन्न भागों से अपनी राजधानी दिल्ली जाते हुए निहत्थे आंदोलनकारी थे बस यही कसूर था उनका कि उत्तराखंड राज्य की मांग।और यूपी सरकार की ऐसी व्यवस्था थी कि जिसने सुरक्षा देनी थी, महिलाओं को ही नहीं, पुरुषों को भी वही भक्षक के रूप में क्रुरतम हिंसा और अमानवियता की पराकाष्ठाओं को हिंसात्मक रूप देने में सम्मिलित हो गये। उस समय सरकार की मानवीयता छलनी हो गई। रामपुर तिराहे के लहराते खेत और वहां की संपूर्ण प्रकृति असहाय महिला और पुरुषों की कराहों के साथ चित्कार कर उठी होगी। लेकिन तथाकथित रक्षकों पर प्रभाव नहीं पड़ा। उनकी संवेदनाएं और मानवतायें भस्म हो गई और वे दैत्य स्वरूप के संवाहक
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