हरिद्वार। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि आध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास हेतु साधना आवश्यक है। साधना से ही साधक का चहुंमुखी विकास संभव है। डॉ. पण्ड्या अश्विन नवरात्र साधना में जुटे साधकों को वर्चुअल संदेश दे रहे थे। इस मौके पर डॉ.पण्ड्या ने गायत्री के सिद्ध साधक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिये गये व्यक्तित्व की परिभाषा को याद करते हुए व्यक्ति के गुण, कर्म व स्वभाव का समुच्चय ही व्यक्तित्व है, जो कि उसके चिंतन, चरित्र व व्यवहार के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। इन गुण, कर्म व स्वभाव का संबंध व्यक्ति की इच्छाओं, मान्यताओं व आकांक्षाओं से होता है। जो कि उसके अचेतन से संबंधित होता है। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने कहा कि यदि अचेतन का संपूर्ण परिष्कार हो जाता है, उसके चेतन मन का विकास हो जाता है। ऐसा व्यक्तित्व अपनी उत्कृष्टता के शिखर पर होता है। अध्यात्म विज्ञान के प्रखर वक्ता ने कहा कि साधना से व्यक्तित्व परिष्कृत होता हुआ चला जाता है। विश्व भर में जितने भी ऋषि-मुनि एवं समाज सुधारक हुए हैं, सबके जीवन में यह देखने को मिलता है। इस अवसर पर डॉ पण्ड्या ने श्रीमद्भगवतगीता में आदर्श व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इससे पूर्व शांतिकुंज के आचार्यों की टीम ने आश्विन नवरात्र हेतु गायत्री साधकों को अनुशासन गोष्ठी में साधनाकाल में किये जाने वाले जप एवं दिनचर्या पर विस्तृत जानकारी दी एवं गायत्री साधना के लिए संकल्पित करवाई। नवरात्र साधना के प्रथम की शुरुआत ध्यान साधना एवं गायत्री हवन से हुआ, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से आये साधकों ने यज्ञाहुतियाँ अर्पित की।
हरिद्वार। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि आध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास हेतु साधना आवश्यक है। साधना से ही साधक का चहुंमुखी विकास संभव है। डॉ. पण्ड्या अश्विन नवरात्र साधना में जुटे साधकों को वर्चुअल संदेश दे रहे थे। इस मौके पर डॉ.पण्ड्या ने गायत्री के सिद्ध साधक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिये गये व्यक्तित्व की परिभाषा को याद करते हुए व्यक्ति के गुण, कर्म व स्वभाव का समुच्चय ही व्यक्तित्व है, जो कि उसके चिंतन, चरित्र व व्यवहार के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। इन गुण, कर्म व स्वभाव का संबंध व्यक्ति की इच्छाओं, मान्यताओं व आकांक्षाओं से होता है। जो कि उसके अचेतन से संबंधित होता है। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने कहा कि यदि अचेतन का संपूर्ण परिष्कार हो जाता है, उसके चेतन मन का विकास हो जाता है। ऐसा व्यक्तित्व अपनी उत्कृष्टता के शिखर पर होता है। अध्यात्म विज्ञान के प्रखर वक्ता ने कहा कि साधना से व्यक्तित्व परिष्कृत होता हुआ चला जाता है। विश्व भर में जितने भी ऋषि-मुनि एवं समाज सुधारक हुए हैं, सबके जीवन में यह देखने को मिलता है। इस अवसर पर डॉ पण्ड्या ने श्रीमद्भगवतगीता में आदर्श व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इससे पूर्व शांतिकुंज के आचार्यों की टीम ने आश्विन नवरात्र हेतु गायत्री साधकों को अनुशासन गोष्ठी में साधनाकाल में किये जाने वाले जप एवं दिनचर्या पर विस्तृत जानकारी दी एवं गायत्री साधना के लिए संकल्पित करवाई। नवरात्र साधना के प्रथम की शुरुआत ध्यान साधना एवं गायत्री हवन से हुआ, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से आये साधकों ने यज्ञाहुतियाँ अर्पित की।
Comments
Post a Comment