हरिद्वार। गत 20अक्टूबर से प्रारम्भ श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े की पवित्र छड़ी यात्रा सोमवार सबेरे उत्तरकाशी से फलस्वाड़ी ग्राम स्थित सीतामढ़ी के लिए रवाना हुयी। पवित्र छड़ी को कानूनगो गुबाल पंवार,उपनिरीक्षक दिलमोहनविष्ट,पटवारी प्रकाश रमोला,जीएमवीएन के प्रबंधक ने विधिवत पूजा अर्चना करके रवाना किया। जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज के नेतृत्व में पवित्र छड़ी को लेकर तेरहमढ़ी के श्रीमहंत शिवदत्त गिरि,श्रीमहंत पुष्करराज गिरि,महंत रतन गिरि हर हर महादेव के जयघोष के साथ सीतामढ़ी के लिए रवाना हुए। पौराणिक स्थल सीतामढ़ी पहुचने पर ग्रामीणों द्वारा पवित्र छड़ी का स्वागत किया गया। मन्दिर के पूरोहित द्वारा पवित्र छड़ी का विधिवत पूजा अर्चना कर अभिषेक किया गया। श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज ने फलस्वाड़ी स्थित पौराणिक तीर्थस्थल सीतामढ़ी का इतिहास बताते हुए कहा कि इस पौराणिक स्थल पर माता सीता ने भूसमाधि ली थी। लव-कुश को भगवान श्रीराम को सौपने के बाद जब माता सीता पृथ्वी में समाई तो लक्ष्मण ने उन्हे पकड़ने का प्रयास किया था,लेकिन उनके हाथ में केवल माता के बाल ही आये,इसी कथा के चलते आज भी फलस्वाड़ी गाम तथा इसके आस-पास के ग्रामीण दीपावली के बाद आने वाली द्वादशी पर विशाल मेला जिसे इगास बग्वाल कहते है। जिसमें पास के ही लक्ष्मण मन्दिर से ग्रामीण लक्ष्मण जी की ध्वजा लेकर आते है। तब माता के बालों के प्रतीक स्वरूप् की एक लम्बी रस्सी बनाई जाती है,जिसे दो पक्षों द्वारा रस्सा-कस्सी के बाद प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। मेले के समापन अवसर पर ग्रामीणों द्वारा सीता माता के प्रतीक स्वरूप एक पत्थर पृथ्वी में गाड़ा जाता है। जिसे अगले वर्ष निकाला जाता है,बताया जाता है कि अगले वर्ष जब इस पत्थर को निकाला जाता है तो वह पत्थर किसी दूसरे स्थान पर निकलता है। श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने कहा कि जानकारी के अभाव में यह पौराणिक तीर्थ उपेक्षित है। इसका उचित प्रचार-प्रसार तथा इसकी गरिमा प्रतिष्ठा प्रतीत करने के उददे्श्य से ही पवित्र छडी को दर्शन के लिए यहां लाया गया है। उन्होने सरकार से अपील की है कि इस तीर्थ जीर्णोद्वार कर इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि इस पौराणिक मन्दिर के साथ साथ स्थानीय ग्रामीणों को भी रोजगार मिले और पलायन पर रोक लग सके। छड़ी यात्रा में साधुओं के जत्थे में महंत वशिष्ठ गिरि महाराज,महंत रणधीर गिरि,महंत आजाद गिरि,महंत पारसपुरी,महंत गौतम गिरि,राज गिरि,लालगिरि,अमृतपुरी,धर्मेन्द्र पुरी आदि शामिल थे।
हरिद्वार। गत 20अक्टूबर से प्रारम्भ श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े की पवित्र छड़ी यात्रा सोमवार सबेरे उत्तरकाशी से फलस्वाड़ी ग्राम स्थित सीतामढ़ी के लिए रवाना हुयी। पवित्र छड़ी को कानूनगो गुबाल पंवार,उपनिरीक्षक दिलमोहनविष्ट,पटवारी प्रकाश रमोला,जीएमवीएन के प्रबंधक ने विधिवत पूजा अर्चना करके रवाना किया। जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज के नेतृत्व में पवित्र छड़ी को लेकर तेरहमढ़ी के श्रीमहंत शिवदत्त गिरि,श्रीमहंत पुष्करराज गिरि,महंत रतन गिरि हर हर महादेव के जयघोष के साथ सीतामढ़ी के लिए रवाना हुए। पौराणिक स्थल सीतामढ़ी पहुचने पर ग्रामीणों द्वारा पवित्र छड़ी का स्वागत किया गया। मन्दिर के पूरोहित द्वारा पवित्र छड़ी का विधिवत पूजा अर्चना कर अभिषेक किया गया। श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज ने फलस्वाड़ी स्थित पौराणिक तीर्थस्थल सीतामढ़ी का इतिहास बताते हुए कहा कि इस पौराणिक स्थल पर माता सीता ने भूसमाधि ली थी। लव-कुश को भगवान श्रीराम को सौपने के बाद जब माता सीता पृथ्वी में समाई तो लक्ष्मण ने उन्हे पकड़ने का प्रयास किया था,लेकिन उनके हाथ में केवल माता के बाल ही आये,इसी कथा के चलते आज भी फलस्वाड़ी गाम तथा इसके आस-पास के ग्रामीण दीपावली के बाद आने वाली द्वादशी पर विशाल मेला जिसे इगास बग्वाल कहते है। जिसमें पास के ही लक्ष्मण मन्दिर से ग्रामीण लक्ष्मण जी की ध्वजा लेकर आते है। तब माता के बालों के प्रतीक स्वरूप् की एक लम्बी रस्सी बनाई जाती है,जिसे दो पक्षों द्वारा रस्सा-कस्सी के बाद प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। मेले के समापन अवसर पर ग्रामीणों द्वारा सीता माता के प्रतीक स्वरूप एक पत्थर पृथ्वी में गाड़ा जाता है। जिसे अगले वर्ष निकाला जाता है,बताया जाता है कि अगले वर्ष जब इस पत्थर को निकाला जाता है तो वह पत्थर किसी दूसरे स्थान पर निकलता है। श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने कहा कि जानकारी के अभाव में यह पौराणिक तीर्थ उपेक्षित है। इसका उचित प्रचार-प्रसार तथा इसकी गरिमा प्रतिष्ठा प्रतीत करने के उददे्श्य से ही पवित्र छडी को दर्शन के लिए यहां लाया गया है। उन्होने सरकार से अपील की है कि इस तीर्थ जीर्णोद्वार कर इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि इस पौराणिक मन्दिर के साथ साथ स्थानीय ग्रामीणों को भी रोजगार मिले और पलायन पर रोक लग सके। छड़ी यात्रा में साधुओं के जत्थे में महंत वशिष्ठ गिरि महाराज,महंत रणधीर गिरि,महंत आजाद गिरि,महंत पारसपुरी,महंत गौतम गिरि,राज गिरि,लालगिरि,अमृतपुरी,धर्मेन्द्र पुरी आदि शामिल थे।
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