हरिद्वार। रामेश्वर आश्रम के अध्यक्ष महामंडलेश्वर रामेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि भाजपा सरकार में संतों के ऊपर मुकदमा दर्ज होना बेहद निंदनीय है। मुख्यमंत्री को संतों के ऊपर दर्ज मुकदमे को वापस लेना चाहिए अन्यथा इसके परिणाम सरकार को भुगतने होंगे। प्रेस को जारी बयान में महामंडलेश्वर स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि लोकतंत्र में सबको खुलकर बोलने का अधिकार है और अभिव्यक्ति की आजादी है। संत समाज धर्म की रक्षा के लिए सदैव प्रयासरत रहा है और आगे भी रहेगा। देश की अखंडता को भंग करने वालों के खिलाफ संत समाज सदैव खड़ा रहेगा और ऐसे लोगों को खुलकर जवाब दिया जाएगा। लेकिन सरकार द्वारा दबाव में संतों के ऊपर मुकदमा दर्ज करना बेहद ही निंदनीय है। सनातन धर्म में शास्त्र के साथ-साथ धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र का प्रयोग करने की भी प्रेरणा दी गई है। जब-जब भी सनातन धर्म पर कुठाराघात किया गया, तो संतों ने आगे आकर उसका मुंहतोड़ जवाब दिया है। हिंदू विचारधारा वाली भाजपा सरकार में संतों पर मुकदमा दर्ज होना सरकार की धर्म विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। मुख्यमंत्री संतों के ऊपर दर्ज मुकदमों को वापस लें अन्यथा आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना होगा।शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के लिए संत समाज ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है। सरकार यह बताए कि हिंदू धर्म संसद यदि हिंदुस्तान के विभिन्न प्रांतों में नहीं होगी तो क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों में आयोजित की जाएगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री तत्काल प्रभाव से संतों से माफी मांगें। महामंडलेश्वर शिवानंद एवं स्वामी आत्मानन्द ने भी राज्य सरकार द्वारा संतों पर दर्ज किए गए मुकदमे खारिज करने की मांग की है।
हरिद्वार। भाजपा की ओर से ऋषिकेश मेयर,मण्डल अध्यक्ष सहित तीन नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस जारी किया है। एक सप्ताह के अन्दर नोटिस का जबाव मांगा गया है। भारतीय जनता पार्टी ने अनुशासनहीनता के आरोप में ऋषिकेश की मेयर श्रीमती अनिता ममगाईं, ऋषिकेश के मंडल अध्यक्ष दिनेश सती और पौड़ी के पूर्व जिलाध्यक्ष मुकेश रावत को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनबीर सिंह चैहान के अनुसार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के निर्देश पर प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने नोटिस जारी किए हैं। नोटिस में सभी को एक सप्ताह के भीतर अपना स्पष्टीकरण लिखित रूप से प्रदेश अध्यक्ष अथवा महामंत्री को देने को कहा गया है।
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