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भारतीय संस्कृति और परंपरा से अपने बच्चों को अवगत कराना चाहिए-एम.वैंकया नायडू

 उपराष्ट्रपति ने किया देसविवि में किया दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान का शुभारंभ


हरिद्वार। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान (दएशांसुसं) का शुभारंभ किया। यह संस्थान दक्षिण एशियाई देशों के बीच तमाम राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी सकारात्मक व्यवहार की स्थापना को प्रेरित करता है। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर शहीदों की याद में बनी शौर्य दीवार पर पुष्पांजलि अर्पित भी की। साथ ही देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में स्थापित एशिया के प्रथम बाल्टिक सेंटर का अवलोकन किया। उन्होंने बाल्टिक देशों में सेंटर द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को सराहा। उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल ने कुटीर उद्योग,हस्तकरघा का अवलोकन किया एवं देसंविवि के नवीनतम वेबसाइट, प्रज्ञायोग प्रोटोकॉल एवं उत्सर्ग पुस्तक का भी विमोचन किया। उपराष्ट्रपति ने प्रज्ञेश्वर महादेव का पूजन कर विश्व शांति, राष्ट्र की सुख समृद्धि एवं उन्नति की कामना की। उन्होंने प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राक्ष के पौधे का रोपण कर पर्यावरण संतुलन के लिए संदेश दिया। इस दौरान उपराष्ट्रपति नायडू मुख्य अतिथि के रूप में शांतिकुंज स्थापना की स्वर्ण जयंती के मौके पर आयोजित व्याख्यानमाला में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड की तीर्थ भूमि हरिद्वार में इस अध्यात्मिक संस्थान में अपने विचारों को साझा करने का सौभाग्य मिला है। इस अवसर पर उन्होंने मां, मातृभाषा और मातृभूमि को सदैव आत्मा से जोडे रहने के लिए उपस्थित लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि देश के उच्च पदों पर आसीन लोगों ने अपनी मातृभाषा में अध्ययन कर उंचाइयों को प्राप्त किया। उन्होंने मातृभाषा को आगे बढ़ाने पर विशेष जोर दिया कहा कि मातृ भाषा को आगे लाने के लिये हर सम्भव प्रयास किये जायें। हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने आह्वान किया की हमें भारतीय संस्कृति और परंपरा से अपने बच्चों को अवगत कराना चाहिए। बच्चों को प्रकृति के नजदीक जाने का मौका दें। जिससे प्रकृति के महत्व को करीब से जानने और सीखने का मौका बच्चों को मिल सके। भारतीय चिंतन में शिक्षा और शिक्षण पर गंभीर विमर्श किया गया था जो सदियों की गुलामी में भुला दिया गया। आजादी के अमृत काल में अपेक्षित है कि शिक्षा पर इस भारतीय विमर्श पर शोध किया जाय,उसे आधुनिक जरूरतों के अनुरूप प्रासंगिक बनाया जाय।उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है शिक्षा का भारतीयकरण। अच्छी और सच्ची शिक्षा के विस्तार से ही शिक्षा का लोकतंत्रीकरण संभव है। समाज के सभी वर्गों को शिक्षा से जोड़ें। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में विविधता ही यहां की विशेषता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के दिव्य प्रकाश में ही व्यक्ति समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बन पाता है। देवसंस्कृति विवि की शिक्षा प्रकृति और संस्कृति का अच्छा संयोजन है। भारतीय संस्कृति के उत्थान में जुटे गायत्री परिवार एवं देवसंस्कृति विवि के कार्यों की सराहना की। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) गुरमीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि देव संस्कृति विश्विद्यालय उन्हें एक मंदिर जैसा लगता है। यहाँ भारतीय संस्कृति पर जिस वैज्ञानिक तरीके से शोध हो रहा है,उसका नेतृत्व देवसंस्कृति विवि करेगा,ऐसा मुझे विश्वास है। दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान शांति प्रेम और खुशहाली के लिए कार्य करेगा। उन्होंने कहा जिस तरह आचार्य पं.श्रीराम शर्मा ने शांति एवं सौहार्द्र के लिए कार्य किया है,उसे यह सेंटर आगे बढायेगा। देव संस्कृति विश्वविद्यालय सच्चे अर्थों में देश और विश्व के कोने-कोने से आए विद्यार्थियों के अध्ययन, अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में नित्य नई ऊंचाइयां छू रहा है। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति के गहरे पद चिन्ह दिखाई देते हैं। इस क्षेत्र में आज दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान के खुलने से नई शुरुआत हुई है। अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि भारतीय सभ्यता संस्कृति एवं इतिहास को गहराई से जानने व समझने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। संस्कृत भाषा हमें अपनी जड़ों से मिलने का रास्ता दिखाती है। भारतीयों के लिए संस्कृत भाषा सीखना बहुत आसान है। कई देश संस्कृत भाषा पर रिसर्च कर रहे हैं जिनसे सीख लेने की जरूरत है। विश्विद्यालय के प्रतिकुलपति डा.चिन्मय पण्ड्या ने स्वागत उद्बोधन एवं दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान की परिकल्पना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय पंरपरा शांति, समरसता और सौहार्द्र की रही है। इसी कार्य को इस संस्थान के माध्यम से और आगे बढायेंगे। इसी क्रम में वेदों और उपनिषदों के सार को भी विश्व भर में फैलायेंगे। कुलपति शरद पारधी ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डा.चिन्मय पण्ड्या ने गायत्री मंत्र लिखित चादर, युग साहित्य एवं स्मृति चिह्न भेंटकर उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल को सम्मानित किया। इस अवसर पर एडीजी संजय गुंज्याल, आयुक्त गढ़वाल सुशील कुमार, आईजी गढ़वाल के.एस.नगन्याल,जिलाधिकारी डा.आर राजेश कुमार, डीआईजी जन्मेजय खंडूरी, अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) शिव सिंह बरनवाल, उप जिलाधिकारी अपूर्वा पांडे के अलावा अन्य अधिकारीगण मौजूद रहे।


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