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सृष्टि के समस्त घटकों का बोध है शिक्षाः साध्वी देवप्रिया

 


हरिद्वार। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के सातवंे दिन पतंजलि वि.वि. में विद्वान वक्ताओं द्वारा प्राचीन गुरुकुलीय शिक्षा के विराट स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी। संगीत विभाग के आचार्यों द्वारा अतिथि विद्वानों के सम्मान में स्वागत गीत के उपरान्त प्रथम सत्र का संबोधन पतंजलि विश्वविद्यालय की कुलानुशसिका, योग विज्ञान संकाय तथा मानविकी एवं प्राच्य विद्या संकाय की संकायाध्यक्ष वैदिक विदूषी प्रो. साध्वी देवप्रिया द्वारा छह भारतीय दर्शन के संक्षिप्त परिचय के साथ-साथ गुरुकुल शिक्षा पद्धति के दिव्य स्वरूप,संस्कार,विद्या,नारी शिक्षा, गुरु-शिष्य-परम्परा आदि बिन्दुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। उन्होंने धर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि धर्म वह है जिससे बाह्य उन्नति के साथ-साथ आंतरिक उन्नति भी हो। प्राचीन शिक्षा के भव्य केन्द्रों का परिचय देने के क्रम में उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य अपनी संपूर्ण दिव्यता को अभिव्यक्त करना है न कि किसी को प्रभावित करना। आंतरिक विकास हेतु उन्होंने प्रतिभागियों का मार्गदर्शन करते हुए अन्तःकरण चतुष्टय, पंचकोषीय विद्या, अष्टांग योग व संस्कार सिद्धान्त की व्यवस्था की।द्वितीय सत्र में पतंजलि अनुसंधान संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. अनुराग वार्ष्णेय का मार्गदर्शन मिला। उन्होंने कोविड-19 के उपचार व बचाव के साधन के रूप में पतंजलि द्वारा निर्मित विश्व की प्रथम आयुर्वेदिक दवा ‘कोरोनिल’ के निर्माण के सदंर्भ में हुए अनुसंधान कार्यों से सभी को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि कोरोनिल से संबंधित 26 शोधपत्र दुनिया के विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किये जा चुके हैं। उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान व इसके चरणों की विस्तार से एवं स्पष्ट व्याख्या प्रदान की। तृतीय सत्र को संबोधित करते हुए पतंजलि विश्वविद्यालय के परामर्शदात्री समिति के महामंत्री एवं भारत के अनेक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में कुलपति का दायित्व निर्वहन कर चुके प्रो. के. एन. एस. यादव ने नई शिक्षा नीति के सन्दर्भ में दक्षता निर्माण, अनुसंधान व रोजगार उन्मुख पाठ्यक्रम सहित विभिन्न आयामों की विस्तार से व्याख्या की। अपनी शैक्षणिक यात्रा में मिली सफलताओं व बाधाओं को भी साझा करते हुए प्रो. यादव ने योगऋषि के मन्त्र ‘अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ’ करने के लिए आचार्यों व शोधार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान किया। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में वि.वि. के प्रति-कुलपति प्रो.महावीर अग्रवाल,कुलसचिव डॉ.पुनिया, संकायाध्यक्ष प्रो.कटियार, सह-कुलानुशासक स्वामी परमार्थदेव,उप-कुलसचिव डॉ.निर्विकार, स्वामी आर्शदेव सहित वि.वि. के विभिन्न संकायों के आचार्य एवं शोध छात्र उपस्थित रहे। सत्र का सफल संचालन स्वामी मित्रदेव, डॉ. संन्दीप सिंह एवं डॉ. रूद्र भण्डारी ने किया।


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