मनुष्य की असल समस्या है उसका मन: डॉ. चिन्मय पंड्या
हरिद्वार। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य में आध्यात्मिकता, आयुर्वेद और वैकल्पिक उपचारों की भूमिका विषय पर तीन दिवसीय अंर्तराष्ट्रीय कार्यशाला का आज समापन हो गया। बहुआयामी कार्यशाला जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय विज्ञान,चिकित्सा और आध्यात्मिक विधाओं को समझ उनसे प्रासंगिक मानव जीवन की समस्याओं को सुलझाना रहा। विवि के वैज्ञानिक आध्यात्मवाद विभाग द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन कराया गया। अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के अंतिम दिन देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति शरद पारधी ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। मानसिक रोगों से बचने के विभिन्न उपायों को व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक उदाहरणों के साथ समझाया। इस अवसर पर उन्होंने पं० श्रीराम शर्मा आचार्य श्री द्वारा लिखित वैज्ञानिक अध्यात्मवाद से संबंधित विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। इससे पूर्व देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि मनुष्य की असल समस्या है उसका मन, जिसमें असंतोष, ईष्या और क्रोध जैसी दुर्भावनाएं हैं। उन्होंने इन समस्याओं का समाधान भी मनुष्य के मन को ही बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में अंतःकरण की समझ है। यहां की विभिन्न प्राचीन वैज्ञानिक विधाएं हैं जो आध्यात्मिकता की मदद से मनुष्य में सकारात्मक भावनाएं जाग्रत करती हैं, साथ ही व्यक्ति को शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर स्वस्थ बनाती हैं। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या एवं अतिथियों ने मानसिक स्वास्थ्य में आध्यात्मिकता, आयुर्वेद और वैकल्पिक उपचारों की भूमिका विषय पर अंतर्विषयक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका और ई-प्रोसीडिंग्स का भी विमोचन किया गया। तीन दिन चले इस कार्यशाला में भारत के १९ अलग-अलग राज्यों से आए करीब १०० शोधार्थियों ने भाग लिया और अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। कार्यशाला में अलग अलग सत्रों की अध्यक्षता देसंविवि के डॉ. पीयूष त्रिवेदी,डॉ.अमृत गुरवेंद्र,डॉ.सुरेश बर्णवाल, डॉ.आरती ने की। इस दौरान में डॉ उर्मिला श्रीवास्तव, डॉ बिजॉय राज,डॉ विवेक महेश्वरी,डॉ चिराग अंधारिया, डॉ प्रेरणा पुरी, डॉ महेश भट्ट एवं डॉ राम प्रकाश शर्मा सहित देसंविवि के विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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