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समान नागरिक संहिता की संभावनायें तलाशने में सभी स्टॉक होल्डर्स की भागीदारी आवश्यक


 हरिद्वार। एस.एम.जे.एन. कॉलेज में आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानून व समान नागरिक संहिता पर गठित विशेषज्ञ समिति का जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता पर गठित विशेषज्ञ समिति के पूर्व मुख्य सचिव,उत्तराखण्ड शासन शत्रुघ्न सिंह, दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.सुलेखा डंगवाल,समाजसेवी मनु गौड़,उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.दिनेश चन्द्र शास्त्री उपस्थित रहे। कार्यक्रम का प्रारम्भ समान नागरिक संहिता पर गठित विशेषज्ञ समिति के प्रमुख पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि समिति का गठन उत्तराखण्ड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता की सम्भावनायें तलाशने हेतु किया गया है। इसमें सभी स्टैक होल्डर्स की भागीदारी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह सोचनीय प्रश्न है कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी भारत के संविधान में वर्णित नीति-निदेशक तत्व में उल्लिखित अनुच्छेद-44 की भावना के साथ न्याय नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि विवाह उत्तराधिकार तथा व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाली विधियों को सार्वभौमिक रूप से लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिए, परन्तु समिति के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती है कि विविधताओं से भरे भारतीय समाज में इस प्रकार की सार्वभौमिक भूमि कैसे लागू की जा सकती है। उन्होंने विशेषकर बौद्धिक वर्ग से आग्रह किया कि वह समिति के कार्यों को आसान बनाने के लिए तथा उत्तरदायी नागरिक का कर्तव्य निभाने के लिए बढ़-चढ़कर समिति को समान नागरिक संहिता पर सुझाव दें।महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुनील कुमार बत्रा ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह वर्तमान की मांग है कि हम तलाक, विवाह व उत्तराधिकार के समान कानूनों की ओर आगे  बढ़ कर कार्य करें। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ समिति द्वारा जन संवाद कार्यक्रम का प्रारम्भ किया जाना बेहद सराहनीय पहल है और इससे प्रतिभागी लोकतंत्र की अवधारणा मजबूत होती है। उन्होंने पुरुष एवं महिला के विवाह के लिए 25 वर्ष की उम्र के निर्धारण की बात कही पैतृक सम्पति में महिला की हिस्सेदारी की भी बात समान नागरिक संहिता में सम्मिलित करने के लिए अपनी बात रखीं। समिति की सदस्या प्रो.सुलेखा डंगवाल कहा कि कोई भी परम्परा यदि वह आधी आबादी अर्थात् महिलाओं की गरिमा के पक्ष में न हो तो ऐसी परम्परा अथवा कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं रहना चाहिए।समान नागरिक संहिता समिति की सदस्य मनु गौड़ ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि समिति के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती आधुनिक समाज में आने वाली विभिन्न नई प्रवृत्तियाँ हैं। उन्होंने कहा कि तकनीक तथा इंटरनेट के विकास के कारण हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ विवाह,तलाक तथा उत्तराधिकार के समान कानून, समय की आवश्यकता है। उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने सनातन धर्म की परम्पराओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन परम्पराओं को अक्षुण्ण रखना ही समिति का उद्देश्य होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के समन्वयक डा.संजय कुमार माहेश्वरी ने समिति से आग्रह किया कि वे कोई भी कानून बनाते हुए व्यक्ति की मूलभूत गरिमा विशेषकर वैयक्तिक अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करें। उन्होंने आगे जोड़ा कि भारत सदैव से ही विभिन्न सामाजिक समूहों के प्रति उदार रहा है, अतः उदारतापूर्ण तरीके से ही विभिन्न विभिन्नताओं को समायोजित किया जाना चाहिए। समिति द्वारा मांगे गये सुझावों पर बोलते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष विनय थपलियाल ने कहा कि निश्चित रूप से समांगी समाज के निर्माण के क्रम में हम किसी भी सामाजिक समूह को, सामाजिक मुख्य धारा से वंचित नहीं कर सकते। उन्होंने आग्रह किया कि व्यक्तिगत मामलों तथा महिला अधिकार के मामलों पर समिति माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समय समय पर दिये गये दिशा-निर्देशों के अधीन कार्य करे। साथ ही  थपलियाल ने यह भी कहा कि चूंकि यह विषय समवर्ती सूची का विषय है, अतः केन्द्र को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर पहल करे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महाविद्यालय के छात्र-छात्रा उपस्थित थे। कॉलेज की पूर्व छात्रा कु.अनन्या भटनागर ने इस अवसर पर सरस्वती वन्दना की संगीतमय प्रस्तुति देते हुए कहा कि समिति से आग्रह है कि वे लिव इन रिलेशन शिप तथा विवाह की आयु सम्बन्धी कानून पर सहानुभूति पूर्वक विचार करे तथा इन्हें नियंत्रित करने हेतु कानून लाये। वहीं गौरव बंसल,बी.कॉम ने समिति से आग्रह किया कि वे एलजीबीटीक्यू समुदाय के अधिकारों का गरिमामयी संरक्षण करें। बी.एससी. द्वितीय वर्ष की छात्रा अर्शिका ने महिला अधिकारों के हनन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए समिति को सुझाव दिया कि वे विवाह तथा सहमति की आयु पर पुर्नविचार करे। जिससे महिलाओं को सामाजिक मुख्य धारा में सम्मिलित होने के सुअवसर प्रदान किया जा सके। इस अवसर पर ओम शर्मा,सूर्यांश,उर्वशी,अंशिका,खुशी,डोली,सिमरन,आयुषी,आरती सहित कॉलेज के समस्त प्राध्यापक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी उपस्थित थे। 


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