हरिद्वार। दक्षनगरी के विष्णु गार्डन स्थित श्रीगीता विज्ञान आश्रम में धर्म और अध्यात्म के वैज्ञानिक स्वरूप पर चर्चा हुई। जिसमें महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज द्वारा खानपान एवं रहन-सहन में सुधार कर जीवन को सुखी और शरीर को स्वस्थ रखने के उपायों की जानकारी दी, जिनका अनुसरण कर व्यक्ति चिरायु बन सकता है। मानव जीवन को प्रकृति की अनमोल धरोहर बताते हुए महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि प्रकृति ही ब्रह्म का बास है और जो जीव प्रकृति (ब्रह्म) भगवान को अपना जीवन समर्पित कर देता है। भगवान उसको सदा सुखी रखते हैं। प्रकृति के विरुद्ध आचरण और आहार ही व्यक्ति की व्यथा का कारण बनता है। मनुष्य को छोड़कर सभी जीवधारी प्रकृति की व्यवस्था के अनुरूप जीवन यापन करते हैं और सदा स्वस्थ रहते हैं, जबकि आजकल 80 प्रतिशत मनुष्य किसी न किसी प्रकार की व्यथा से व्यथित है। आहार एवं व्यवहार के नियमों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि जीवित खाद्य पदार्थ का सेवन व्यक्त को स्वस्थ एवं चिरायु बनाता है। बिना पकाई गई सब्जियां सलाद के रूप में भोजन से पूर्व सेवन करने से पाचन तंत्र मजबूत रहता है और कभी अपच की शिकायत नहीं आती है। कई प्रकार के भोजन एक दूसरे के विपरीत गुणों वाले होते हैं। भोजन की सर्वोत्तम विधि यह है कि एक बार में एक ही प्रकार का भोजन करें, एक साथ कई प्रकार की सब्जियां पाचन तंत्र को कमजोर करती हैं। भोजन के बाद और रात्रि के समय कभी भी फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। 25 वर्ष की आयु के बाद सप्ताह में एक दिन या 15 दिन में एक बार अथवा महीने में एक दिन का उपवास अवश्य रखना चाहिए। इससे पाचन तंत्र को आराम मिलता है। उपवास का अर्थ शरीर की स्वच्छता से होता है। उपवास में निराहार न रहकर जल और फल का सेवन करना चाहिए। इस अवसर पर हरिद्वार सहित निकटवर्ती कई प्रांतों के भक्त उपस्थित थे।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा कि वर्तमा
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