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राजहंस ऑक्सीजन के कम लेवल पर भी पार कर लेता है एवरेस्ट !!

 एवरेस्ट को पार कर ऐसे आते हैं राजहंस हरिद्वार


हरिद्वार। राजहंस यानी बार हेडेड गीज आजकल हरिद्वार के गंगा घाटी में जल विहार कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक व गुरुकुल कांगरी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. दिनेश भट्ट की टीम के अनुसार दिसंबर अंतिम सप्ताह में हरिद्वार गंगा की धारा में और आसपास के ताल तलैया में करीब 16 जोड़े राजहंस के दिखाई दिए और नववर्ष के आगमन के साथ इन जोड़ों की संख्या बढ़कर 40-45 हो चुकी है। सारस यानी क्रौंच पक्षी की तरह ही राजहंस में र्न व मादा का जोड़ा आजीवन बना रहता है। यह पक्षी विशुद्ध शाकाहारी है जो जलीय वेजिटेशन जैसे काई  इत्यादि को जलाशयों से भोजन के रूप में प्राप्त करता है। प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया की भारत में आने वाले राजहंस मंगोलिया, चीन, तिब्बत का पठार तथा कजाकिस्तान के हिस्सों से हिमालय पर्वत की एवरेस्ट एवं अन्य उत्तंग श्रृंखलाओं को पार कर भारत भूमि पर शीतकालीन प्रवास हेतु आते हैं। ब्रिटेन, भारत एवं अन्य अनेक देशों के वज्ञानिको की संयुक्त टीम ने पाया कि राजहंस लगभग 53 से 55 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से अपना फ्लाईवे यानी उड़न का रास्ता पार करता है-यह गणना वैज्ञानिकों द्वारा सेटेलाइट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस टूल की सहायता से की गई। प्रोफेसर भट्ट कि टीम में शामिल उत्तराखण्ड संस्कृत यूनिवर्सिटी के पक्षी वैज्ञानिक डॉक्टर विनय सेठी के अनुसार माइग्रेशन गमन के दौरान मंगोलिया और अन्य शीतकालीन प्रदेशों से चलते हुए इन पक्षियों की फ्लाइट मसल्स में 110ः चर्बी यानी फैट अधिक जमा हो जाती है जो इनके फ्लाईवे के गमन के समय इन्हें एनर्जी प्रदान करती है। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि मंगोलिया से चलकर हिंदुस्तान की सरजमी पर पहुंचने में लगभग 5000 किलोमीटर की दूरी को राजहंस लगभग ढाई-तीन माह में पूरा कर लेता है। शोध छात्रा पारुल भटनागर व  शोधार्थी आशीष आर्य ने अवगत कराया की राजहंस एवं अन्य पक्षी मे मार्ग निर्धारण इनकी चोच पर जीपीएस जैसा बायोसेंसर्स के कारण संभव होता है। प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया की सबसे अहम भूमिका पक्षी के मस्तिष्क में स्थित जैविक घड़ी का होता है जिसकी सहायता से इन बर्ड्स में प्रवास गमन की तीव्र इच्छा पैदा होती है और यह निर्धारित मार्ग पर चलकर बर्फीले प्रदेश से हिंदुस्तान जैसे अपेक्षाकृत गर्म प्रदेश में सफलतापूर्वक अपना शीतकाल व्यतीत करते हैंप् प्रोफेसर भट्ट ने अपनी वार्ता में रुचिकर जानकारी प्रदान की की कोलंबिया यूनिवर्सिटी कनाडा के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में राजहंस पक्षी के माइग्रेशन संबंधित व्यवहार को परखा और पाया कि यह पक्षी 40 50ः ऑक्सीजन के कम स्तर में भी अपना माइग्रेशन जारी रखता है और इसके हृदय की गति में कोई खास अंतर नहीं आता है। यह प्रयोग इसलिए किया गया कि एवरेस्ट की चढ़ाई करते हुए कई पर्वतारोहियों के द्वारा यह बताया गया कि राजहंस एवरेस्ट पर्वत को पार कर हिंदुस्तान की सरजमी में प्रवेश करता है और यह ऐसा वर्ष में दो बार करता है। एक बार तब जब मंगोलिया या चीन से भारत आना हो और दूसरी बार तब जब हिंदुस्तान में मार्च-अप्रैल में गर्मी शुरू हो जाती है तो यह पंछी पर्वत शृंखला पार कर वापस जाते हैं। प्रश्न उठता है कि जब मानव में ऑक्सीजन का स्तर 90ः से कम हो जाता है, जैसा कि लोगों ने कोरना संक्रमण काल में अक्सर पाया, और इस स्थिति में मनुष्य की मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है तो फिर राजहंस कैसे ४०-५०:ऑक्सीजन लेवल मे एवेरेस्ट पार कर जाता है ? कोरोना काल में लोगों ने यह भी पाया कि ऑक्सीजन के स्तर की एकाएक कमी हो जाने से और अस्पताल पहुंचने से पूर्व ही हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी थीप् जिस से ज्ञात होता है कि ऑक्सीजन का एक खास स्तर ९५ः हमारे शरीर के लिए कितना जरूरी है। प्रोफेसर भट्ट बताते है कि दरअसल ऑक्सीजन फेफड़ों से रक्त की हिमोग्लोबिन नामक प्रोटीन के माध्यम से शरीर की कोशिकाओं में पहुंचाई जाती है और वहाँ ऊर्जा यानी एटीपी बनाती है। यदि यह ऊर्जा नहीं बनती है तो शरीर के अंग जैसे हृदय, मस्तिष्क, मांस पेशियां इत्यादि काम करना बंद कर देते हैं। इसीलिए हम सभी प्राणी वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। लेकिन ऑक्सीजन के कम लेवल में मनुष्य कैसे रह सके इस बारे में अभी वैज्ञानिक अन्वेषण नहीं हो सका है। पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट के अनुसार राजहंस एक ऐसा पक्षी है जो 50ः ऑक्सीजन के लेबल की कमी को न केवल बर्दाश्त करता है,अपितु हिमालय जैसे उत्तंग शिखरों को भी लगातार पार करते हुए अपनी यात्रा सफल करता है। अतः वैज्ञानिकों के लिए यह कोतुहल और खोज का विषय है कि राजहंस के हिमोग्लोबिन में ऐसी क्या विशेष संरचना है जो कि कम ऑक्सीजन को भी तुरंत स्वीकार कर कोशिकाओं तक पहुंचाती है जिससे उनकी फ्लाइट मसल्स गतिमान बनी रहती हैं। इस सम्बन्ध मे गहरी बायोकैमिकल जानकारी और इस जानकारी का मनुष्य हेल्थ मे उपयोग आज के प्रसंग में अत्यंत महत्वपूर्ण है जबकि कोरोनावायरस ने पुनः चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों में अपने पैर पसार लिए हैं।


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