हरिद्वार। श्री राधे श्याम संकीर्तन मंडली के तत्वाधान में रामनगर कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथा व्यास श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने कथा गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि गुरु के ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है और बिना ज्ञान के हम कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है। माता पिता बालक के प्रथम गुरू हैं। माता पिता द्वारा बाल्यकाल से ही बच्चों को जो सिखाया समझाया जाता है, बच्चे वही अपने मन में धारण कर लेते हैं। इसलिए माता पिता को बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार देने चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार नहीं दे पाते हैं। वह माता-पिता बच्चों के शत्रु हैं। माता पिता के बाद स्कूल कालेज में शिक्षा देने वाले शिक्षक बालक के द्वितीय गुरू हैं। शिक्षकों द्वारा दी गयी शिक्षा से ही हम ऊंचे पद पर पहुंचते हैं। इसके अलावा आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले दीक्षा गुरू से प्राप्त ज्ञान से ही हम असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमृत की ओर बढ़ते हैं। अपने आत्म कल्याण के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं और परमात्मा का भजन पूजन करते हुए परमात्मा की कृपा को प्राप्त करते हुए परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार से श्रीमद्भागवत और अन्य शास्त्र भी हमारे गुरु हैं। शास्त्रों पुराणों का अध्ययन व श्रवण करके हम अच्छे संस्कारों को ग्रहण करते हैं। उन्होंने बताया कि माता पिता, अध्यापक, संत महापुरुष एवं शास्त्रों का हमेशा आदर सत्कार और सम्मान करना चाहिए। कथा के मुख्य यजमान जुगल किशोर अरोड़ा, सुषमा अरोड़ा, सौरभ अरोड़ा, एकता अरोड़ा, पुलकित अरोड़ा, अनिकेत अरोड़ा, मनस्वी अरोड़ा, नवीन खुराना, वीणा खुराना, नरेश अरोड़ा, वंदना अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा, कमल अरोड़ा, राजकुमार अरोड़ा, नीलम अरोड़ा, पंडित गणेश कोठारी, पंडित जगदीश प्रसाद खंडूरी आदि ने भागवत पूजन किया।
हरिद्वार। श्री राधे श्याम संकीर्तन मंडली के तत्वाधान में रामनगर कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथा व्यास श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने कथा गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि गुरु के ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है और बिना ज्ञान के हम कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है। माता पिता बालक के प्रथम गुरू हैं। माता पिता द्वारा बाल्यकाल से ही बच्चों को जो सिखाया समझाया जाता है, बच्चे वही अपने मन में धारण कर लेते हैं। इसलिए माता पिता को बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार देने चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार नहीं दे पाते हैं। वह माता-पिता बच्चों के शत्रु हैं। माता पिता के बाद स्कूल कालेज में शिक्षा देने वाले शिक्षक बालक के द्वितीय गुरू हैं। शिक्षकों द्वारा दी गयी शिक्षा से ही हम ऊंचे पद पर पहुंचते हैं। इसके अलावा आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले दीक्षा गुरू से प्राप्त ज्ञान से ही हम असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमृत की ओर बढ़ते हैं। अपने आत्म कल्याण के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं और परमात्मा का भजन पूजन करते हुए परमात्मा की कृपा को प्राप्त करते हुए परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार से श्रीमद्भागवत और अन्य शास्त्र भी हमारे गुरु हैं। शास्त्रों पुराणों का अध्ययन व श्रवण करके हम अच्छे संस्कारों को ग्रहण करते हैं। उन्होंने बताया कि माता पिता, अध्यापक, संत महापुरुष एवं शास्त्रों का हमेशा आदर सत्कार और सम्मान करना चाहिए। कथा के मुख्य यजमान जुगल किशोर अरोड़ा, सुषमा अरोड़ा, सौरभ अरोड़ा, एकता अरोड़ा, पुलकित अरोड़ा, अनिकेत अरोड़ा, मनस्वी अरोड़ा, नवीन खुराना, वीणा खुराना, नरेश अरोड़ा, वंदना अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा, कमल अरोड़ा, राजकुमार अरोड़ा, नीलम अरोड़ा, पंडित गणेश कोठारी, पंडित जगदीश प्रसाद खंडूरी आदि ने भागवत पूजन किया।
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