हरिद्वार। पंडित हिमांशु द्विवेदी। शिव पूजा के लिए शिवलिंग विशेष फलदायक माना गया है। शिव पुराण के अनुसार अपनी लिंगमूर्ति के अभाव में अन्य किसी भी लिंगमूर्ति की पूजा का विधान है। अर्थात प्रत्येक वर्ण प्रत्येक शिवलिंग पर पूजा कर सकता है। मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंगों पर सब का समान अधिकार है। ज्ञात रहे की शिवलिंग परब्रह्म का प्रतीक ज्योतिर्लिंग है। शिव पूजा में जल और बेल पत्रो का विशेष स्थान है। सर्ग के आदि में विश्व संभव अंडा एवं ज्योतिर्लिंग यह दोनों कारण सलिल या क्षीरसागर में उत्पन्न हुए। सर्गारंभ में जल का स्वरूप क्षीर के समान माना गया है। और इसी कारण सलिल से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। पुराणों के अनुसार गंगा अवतरण रुद्र की जटाओं मे हुआ था। इस व्रत की स्मृति के लिए और जल विशेष रीतिओं में उपयोग द्वारा सर्वव्याधिनाशक और तृप्तिकारक होने से सर्र्वऔषधी स्वरूप है। और फिर गंगाजल भुक्ति मुक्ति का देने वाला है। शिवपुराण रुद्र संहिता मे इसका उल्लेख है कि शिवमूर्ति पर जल की धारा ज्वर प्रलाप आदि रोग शांति के लिए सुख देने वाली है। गंगा जल की धारा भुक्ति और मुक्ति दोनों देने वाली है। अतः भक्त अपनी सभी व्याधियों के निवारण के जल विशेषतः गंगाजल शिव को अर्पण करते हैं। इस प्रकार शिव अर्चना मे गंगाजल का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार गंगाजल ब्रह्म कमंडलु में स्थित धर्मद्रव है।विष्णुचरणकमल से निःसृत मकरंद है। जिसे शंभू ने अपने सिर पर धारण किया। पद्मपुराण के गंगा महातम्य वर्णन मे ब्रह्माजी ने इस कमंडलु मे स्थित पवित्र धर्मद्रव से ही भगवान विष्णु के उस पैर की पूजा की जिसने बलि को पाताल में भेजा था। इस धर्मद्रव को कमंडल से ब्रह्माजी ने हेमकूट पर्वत पर गिरा दिया था। और हेमकूट से निकल कर शंकर की जटाओं में स्थित हुआ। गंगा अवतरण की यह कथा लोकविश्रुत है। जिस गंगा की धारा को शिव ने अपने शीर्ष पर जटओं धारण किया वह जल धर्मद्रव ही है।गंगा हरिब्रह्माहर योग से पृथ्वी पर लोक पावनी है। इसी योग से गंगाजल दिव्य जल है ना की सामान्य जल जिसे वस्त्र से छान कर पवित्र करना पड़े। लिंगपुराण में शिव अर्चना विधि वर्णन है। शिव का स्नान दिव्य जल यानी गंगाजल,घृत,दूध,से करायें। सामान्य नदी का जल दिव्य जल नही है। दिव्यधारा गंगा की धारा है और गंगाजल ही दिव्यतोय है। यह पुराणात्मक काव्य है जिनमें रूपको तथा कोषानुसार शब्दों का प्रयोग है। गंगा धर्मद्रव होने के कारण दिव्य धारा है और इसका जल दिव्यतोय है। अतः शिवपुराण और लिंगपुराण मे इसके विवरण है।
112वॉ मुलतान जोत महोत्सव 7अगस्त को,लाखों श्रद्वालु बनेंगे साक्षी हरिद्वार। समाज मे आपसी भाईचारे और शांति को बढ़ावा देने के संकल्प के साथ शुरू हुई जोत महोसत्व का सफर पराधीन भारत से शुरू होकर स्वाधीन भारत मे भी जारी है। पाकिस्तान के मुल्तान प्रान्त से 1911 में भक्त रूपचंद जी द्वारा पैदल आकर गंगा में जोत प्रवाहित करने का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी अनवरत 112वे वर्ष में भी जारी है। इस सांस्कृतिक और सामाजिक परम्परा को जारी रखने का कार्य अखिल भारतीय मुल्तान युवा संगठन बखूबी आगे बढ़ा रहे है। संगठन अध्यक्ष डॉ महेन्द्र नागपाल व अन्य पदाधिकारियो ने रविवार को प्रेस क्लब में पत्रकारों से मुल्तान जोत महोत्सव के संबंध मे वार्ता की। वार्ता के दौरान डॉ नागपाल ने बताया कि 7 अगस्त को धूमधाम से मुलतान जोट महोत्सव सम्पन्न होगा जिसके हजारों श्रद्धालु गवाह बनेंगे। उन्होंने बताया कि आजादी के 75वी वर्षगांठ पर जोट महोत्सव को तिरंगा यात्रा के साथ जोड़ने का प्रयास होगा। श्रद्धालुओं द्वारा जगह जगह सुन्दर कांड का पाठ, हवन व प्रसाद वितरण होगा। गंगा जी का दुग्धाभिषेक, पूजन के साथ विशेष ज्योति गंगा जी को अर्पित करेगे।
Comments
Post a Comment