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हम मात्र जड़-शरीर नहीं, चैतन्य शाश्वत् सत्ता हैंः स्वामी रामदेव

पैथियाँ बाद में हैं, प्रथम लक्ष्य रोगी को स्वस्थ करना हैः आचार्य बालकृष्ण


 हरिद्वार। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘प्लांट्स टू पेशन्ट्स-एथनोफार्माकोलॉजी पर पुनर्विचार’ के दूसरे दिन स्वामी रामदेव ने कहा कि आयुर्वेद,जड़ी-बूटियाँ,एक स्वस्थ-आध्यात्मिक-सुखी जीवन का मार्गदर्शन,उसकी शिक्षा-दीक्षा जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त की थी,उसको वैदिक ज्ञान व आधुनिक अनुसंधान के संगम के साथ हम आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा शरीर निसर्ग या प्राकृतिक चीजों जैसे-जड़ी-बूटी,वनस्पति आदि को आत्मसात कर लेता है तथा ऐलोपैथी की दवा को फोरन मैटिरियल मानकर उनके साथ संघर्ष करता है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि हम मात्र जड़-शरीर नहीं हैं,हम चौतन्य शाश्वत् सत्ता हैं। एलोपैथी आजकल जड़ पैथी हो गई है। इससे आंशिक सफलता तो मिल जाएगी परन्तु जड़ के पीछे जो चैतन्य है,उस पर भी हमें केन्द्रित होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमने लिवर की दवा बनाने के लिए 2400 प्रोटोकॉल फॉलो किए। अनेक प्रयोगों के साथ हमने ड्रग डिस्कवरी का कार्य किया। लिवोग्रिट व लिवामृत का निर्माण लोगों का जीवन बचाने व आयुर्वेद को पूरे विश्व में प्रतिष्ठा दिलाने के लिए ऐतिहासिक कार्य है। साथ ही किडनी,हृदय,फेफड़ों को रिजनरेट करने के लिए रिनोग्रिट, कार्डियोग्रिट तथा श्वासारि गोल्ड व ब्रोंकोम कारगर औषधियाँ हैं। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार हमारे ऋषियों ने लगभग 300 वनस्पतियों जैसे-तुलसी,गिलोय,अश्वगंधा,एलोवेरा,दालचीनी,हल्दी,काली मिर्च,लौंग,अदरक आदि पर गहन अनुसंधान कर औषधियों का निर्माण किया। आयुर्वेद की परम्परा कालान्तर में लुप्त न हो जाए इसलिए हमारे ऋषियों ने इसे परम्पराओं से जोड़ दिया। एकादशी व्रत,वट वृक्ष व तुलसी की पूजा इन्हीं परम्पराओं के उदाहरण हैं। आचार्य जी ने कहा कि हम शास्त्र आधारित ऋषियों के विज्ञान व गूढ़ रहस्यों को पतंजलि अनुसंधान संस्थान के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मॉडर्न मेडिकल साइंस का हमें सम्मान करना चाहिए लेकिन अपने ऋषियों के ज्ञान पर हमें गौरव होना चाहिए। पैथियाँ बाद में हैं,प्रथम लक्ष्य रोगी को स्वस्थ करना है। इस आयोजन में अहम भूमिका निभाने वाले पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय ने बताया कि हमने जड़ी-बूटियों व वनस्पतियों के घनसत्व पर प्रयोग कर गुणकारी औषधियों का निर्माण किया है। पतंजलि के अनुसंधान को आज वैश्विक स्वीकार्यता मिल रही है। सम्मेलन में सफदरजंग हॉस्पिटल नई दिल्ली के हैड ऑफ सर्जरी एण्ड सर्जिकल ओंकोलॉजी प्रो. चिंतामणि ने कहा कि योग व आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार कर स्वामी जी व आचार्य ने बड़ा कार्य किया है। उन्होंने कहा कि कई बीमारियों का मुख्य कारण दवाओं का विपरीत प्रभाव है। रोग तो मनुष्यों का जीवन ले ही रहे हैं साथ ही ऐलोपैथिक दवाओं का अंधा प्रयोग भी जानलेवा साबित हो रहा है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल्स एजुकेशन एंड रिसर्च, रायबरेली की निदेशक प्रो.शुभिनि ए. शराफ ने नैनो फॉर्मूलेशन के माध्यम से एथनोफार्माकोलॉजी के लाभों का वर्णन किया। डिपार्टमेंट ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग के प्रोफेसर गणेश एस. ने आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन अमलकी रसायन और रस सिन्दूर के न्यूरोप्रोटेक्टिव मैकेनिज्म पर प्रकाश डाला। कंसन चाइनीज मेडिसिन्स रिसर्च सेंटर फॉर रीनल डिजीज के निदेशक प्रो.जीलिंग यू तथा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बैंगलुरू के प्रो.पी.बलराम तथा यूनिवर्सिटी ऑफ लैडिन,नीदरलैंड के प्रो.रॉबर्ट वेर्पूते ने ऑनलाइन माध्यम से अपने अनुसंधान को साझा किया। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.कुनाल भट्टाचार्य ने ‘एथनो-नैनोमेडिसिनः आधुनिक वितरण प्रणाली में पारंपरिक चिकित्सा’,सीनियर प्रिंसिपल संदीप सिन्हा ने ‘ऑर्गेनिक और आईट्रोजेनिक किडनी विकारों का मुकाबला करने के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोणः एक पूर्व-नैदानिक परिप्रेक्ष्य,तथा प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.स्वाती हलदर ने अश्वगंधा आधारित ‘विथानिया सोम्निफेराःरोगाणुरोधी प्रतिरोध के खिलाफ आयुर्वेदिक शस्त्रगार’ विषय पर व्याख्यान दिया। इटली के विख्यात विश्वविद्यालय के बोर्ड मेम्बर प्रो.(डॉ.)डोमेनिको डेलफिनो ने ‘एथनोफार्माकोलॉजी ऑफ एंडोफाइटिक फंगी’,इंटरनेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी मलेशिया के एसोसिएट प्रोफेसर तथा एसोसिएट डीन प्रो.(डॉ.)अभिषेक परोलिया ने‘दंत चिकित्सा में प्रोपोलिस की भूमिकाःतथ्य बनाम काल्पनिकता’ विषय पर अपने गहन शोध को साझा किया। साथ ही पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल के डेंटल क्लिनिक एंड रिसर्च सेंटर के प्रमुख डॉ.कुलदीप सिंह ने‘आधुनिक दंत विज्ञान के साथ योग और आयुर्वेद का पारंपरिक भारतीय ज्ञान के एकीकरण’पर व्याख्यान दिया। सी.डी.आर.आई.लखनऊ के पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ. राकेश मौर्य ने ‘ड्रग डिस्कवरी के लिए संभावित लीड्स की तलाश में पारंपरिक ज्ञान का अनुप्रयोग’ विषय पर चर्चा की। कार्यक्रम में पतंजलि अनुसंधान संस्थान के डी.जी.एम.ऑपरेशन प्रदीप नैन, डॉ.ऋषभदेव,डॉ.निखिल मिश्रा,डॉ.सीमा गुजराल,डॉ.ज्योतिष श्रीवास्तव,देवेन्द्र कुमावत, संदीप सिन्हा तथा डॉ.कुणाल भट्टाचार्य का विशेष सहयोग रहा।


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