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आद्य शंकराचार्य भगवान की 1235वीं जयंती पर संत समाज ने दी श्रद्धाजंलि

 भगवान शंकराचार्य ने राष्ट्र को धार्मिक, सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोया: म.मं.स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी 


हरिद्वार। कनखल की प्रख्यात धार्मिक संस्था सूरत गिरि का बंगला आश्रम में जगद्गुरु भगवान आद्य शंकराचार्य स्मारक समिति के तत्वावधान में आद्य शंकराचार्य भगवान को उनकी 1235वीं  जयंती के अवसर पर षड्दर्शन साधु समाज ने स्मरण किया और श्रद्धांजलि पुष्पांजलि अर्पित की गयी। इस अवसर पर जगतगुरू आद्य शंकराचार्य स्मारक समिति के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी महाराज की अध्यक्षता एवं श्रीमहंत देवानंद सरस्वती के संचालन में सूरत गिरी बंगले में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। आद्यजगदगुरु शंकराचार्य भगवान को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज ने कहा कि भगवान शंकराचार्य ने संपूर्ण भारतवर्ष को धार्मिक,सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया। उन्होंने कहा कि सन्यास परंपरा के संरक्षक संवर्धन भगवान आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार स्वरूप थे जिन्होंने सनातन धर्मयों को शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का उपयोग करने का भी निर्देश दिया अखाड़े उन्हीं की देन है। उन्होंने कहा कि धर्म की रक्षा शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र से की जाती है इसलिए वर्तमान में जो अखाड़े और सन्यास परंपरा के संत दृष्टिगोचर हो रहे हैं वह भगवान आदि शंकराचार्य की देन है। उन्होंने वर्तमान समय में सनातन हिंदू धर्म को संरक्षित करने के लिए सभी सनातन धर्मावलियों को जागरूक होने का आह्वान किया। निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि सनातन हिंदू धर्म के सभी मतमतांतर सनातन हिंदू धर्म के ही संवाहक और संरक्षक है भगवान आदि शंकराचार्य के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हम सब मिलकर अपने धर्म की रक्षा और प्रचार प्रसार करें। भारत माता मंदिर के श्री महंत एवं महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी महाराज ने भगवान आदि शंकराचार्य को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने देश के चारों भागों में शंकराचार्य पीठ स्थापित कर राष्ट्र को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत करने का जो कार्य किया उसी का परिणाम है कि समस्त हिंदू बद्रीनाथ जाना अपना सौभाग्य समझते हैं। भगवान आद्य शंकराचार्य स्मारक समिति के महामंत्री श्रीमहंत देवानंद सरस्वती ने शंकराचार्य जी के जीवन के बारे मे बताया कि शंकराचार्य जी ने महज तीन वर्ष की आयु मे सभी शास्त्रों, वेदों को कंठस्थ कर लिया था। इसी के साथ इतनी कम आयु में भारतदर्शन कर उसे समझा और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एकता के अटूट धागे में पिरोने का अथक प्रयास किया और बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त की जिसका जीवित उदाहरण उन्होंने सर्वप्रथम चार अलग-अलग मठों की स्थापना की और धर्म की रक्षा के लिए आखड़ों की स्थापना कर सनातन धर्म का संरक्षण व संवर्धन किया। इस मौके पर स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज ने कहा कि सभी साधु संत महात्माओं व हिंदू सनातन प्रेमियों को आद्यगुरू शंकराचार्य की जयंती को सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में प्रसारित करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को भगवान शंकराचार्य के बारे में बताना चाहिए। जयंती कार्यक्रम में महामंडलेश्वर गिरधर गिरी, आनंद चेतन सरस्वती,महामंडलेश्वर ललितानंद गिरी,महामंडलेश्वर चेतन आनंद गिरी, महामंडलेश्वर प्रबोधानंद गिरी,महामंडल निर्मल अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज, महामंडलेश्वर प्रेमानंद,महामंडलेश्वर कृष्णानंद गिरी,महामंडलेश्वर ज्ञान गिरी,महंत हृदय नारायण, महंत केसवानंद, महंत कमलेशानंद सरस्वती,महंत कमलानंद गिरि ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में गीता मनीषी राधा गिरि, हंसानन्द सरस्वती, महंत सहजानन्द, महंत भूपेन्द्र भारती, म.मं. ज्ञान स्वरूप, म.मं. ज्योतिषानन्द गिरि,महंत अरूण दास, महंत रामरतन, भारतीय जनता पार्टी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश गिरि, विश्व गुरु शंकराचार्य दशनाम गोस्वामी समाज के राष्ट्रीय महामंत्री प्रमोद गिरि, प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप गिरि, महामंत्री शिव शंकर गिरि, सत्यपाल गिरि, मिथिलेश गिरि, भारत माता मंदिर के आईडी शर्मा शास्त्री, भक्त दुर्गादास सहित सैकड़ों संतांे ने प्रतिभाग किया।


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