तन मन धन से राष्ट्र को समर्पित है सिंधी समाज-डा.युधिष्ठिर लाल
हरिद्वार। उत्तरी हरिद्वार स्थित शदाणी दरबार में राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद नई दिल्ली ने सिंधी भाषा के संवर्धन के लिए दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें सिंधी संतों ने शिरकत कर भाषा के संवर्धन के लिए अपने विचार रखे। संगोष्ठी का शुभारंभ शदाणी दरबार के नवम पीठाधीश्वर संत डा.युधिष्ठिर लाल शदाणी, संत मोहन प्रकाश, संत जयराम दास मोटलानी, एनसीपीएसएल के उपाध्यक्ष मोहन मंघनानी, सिंधी साहित्य एकेडमी दिल्ली के डायरेक्टर सुरेश खत्री ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस मौके पर वक्ता के रूप में संत जयराम दास मोटलानी ने सिंधी भाषा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सिंधी भारत के पश्चिमी हिस्से और मुख्य रूप से सिन्ध प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। यह सिन्धी हिन्दू समुदाय की मातृ-भाषा है। एनसीपीएसएल के उपाध्यक्ष मोहन मंघनानी ने कहा कि सिंधी भाषा वर्तमान में कई तरह की कठिनाइयों से गुजर रही है। प्रत्येक परिवार में बच्चों के साथ सिंधी भाषा का प्रयोग किया जाए। उन्होंने धर्म और संस्कृति को बचाने के लिए सिंधी भाषा के संवर्धन पर बल दिया। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी अशोक तिवारी से निवेदन करते हुए कहा कि सनातन संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए मिलकर कार्य करना होगा। संत डा.युधिष्ठिर लाल ने कहा कि धर्म और संस्कृति के लिए सब कुछ कुर्बान करने के जज्बे की आवश्यकता है। सनातन संस्कृति में गुरु एवं ईश्वर का महत्व है। संत ही धर्म और संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। जिसमें भाषा का प्रमुख योगदान होता है। उन्होंने कहा कि सिंधी समाज तन मन धन से राष्ट्र को समर्पित है। सुरेश खत्री ने कहा कि संतों की महिमा निराली है। संतों ने भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद ने कहा कि संत महापुरुष भाषा और सनातन संस्कृति को बचाने के लिए कार्य करते आ रहे हैं। सनातन संस्कृति की रक्षा करना संत समाज का कर्तव्य भी है।
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