हरिद्वार। कनखल स्थित श्री दरिद्र भंजन महादेव मंदिर में भागवत परिवार के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस की कथा श्रवण कराते हुए श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि वेदव्यास ने चार वेद और सत्रह पुराण लिख दिए। लेकिन वे फिर भी चिंतित एवं दुखी थे। तब नारद ने वेदव्यास उनके दुख का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आगे कलयुग आ रहा है। कलयुग में मनुष्य इन वेदों एवं पुराणों को पढ़ने के लिए समय नहीं दे पाएगा और अपना उद्धार नहीं कर पाएगा। जिससे मनुष्य संस्कार विहीन हो जाएगा। इस पर नारद ने वेदव्यास से कहा कि आप इन समस्त वेदों एवं पुराणों का सार श्रीमद्भागवत महापुराण ग्रंथ लिखिए। नारद से प्रेरित होकर वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की और सर्वप्रथम अपने पुत्र सुखदेव मुनि को श्रीमद्भागवत महापुराण का ज्ञान दिया। जब राजा परीक्षित ने समिक मुनि का अपमान किया। तब समिक मुनि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्यु का श्राप दिया। राजा परीक्षित अपने पुत्र जन्मेजय को राजगद्दी देकर गंगा के तट पर आकर बैठ गए। वहीं पर सुखदेव मुनि ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण सात दिनों तक कराया। शास्त्री ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा ही एकमात्र ऐसा साधन है जो इस कलिकाल में भक्ति एवं ज्ञान प्रदान करता है। इसलिए प्रत्येक घर परिवार में श्रीमद्भागवत ग्रंथ का होना और उसका पाठ किया जाना चाहिए। इस अवसर पर पंडित उमाशंकर पांडे, पंडित हरीश चंद्र भट्ट,पंडित कृष्ण कुमार शास्त्री,पंडित रमेश गोनियाल,पंडित राजेन्द्र पोखरियाल,पंडित निराज कोठारी,पंडित कैलाश चंद्र पोखरियाल,पंडित बचीराम मंडवाल, केशवानंद भट्ट, अजय शर्मा, मोहित शर्मा,शिवम प्रजापति,राहुल धीमान,सागर धवन,पंडित गणेश कोठारी, पवन तनेजा,रिचा शर्मा किरण देवी,अनसुल धवन, बबली शर्मा, गीता चौहान आदि उपस्थित रहे।
हरिद्वार। कनखल स्थित श्री दरिद्र भंजन महादेव मंदिर में भागवत परिवार के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस की कथा श्रवण कराते हुए श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि वेदव्यास ने चार वेद और सत्रह पुराण लिख दिए। लेकिन वे फिर भी चिंतित एवं दुखी थे। तब नारद ने वेदव्यास उनके दुख का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आगे कलयुग आ रहा है। कलयुग में मनुष्य इन वेदों एवं पुराणों को पढ़ने के लिए समय नहीं दे पाएगा और अपना उद्धार नहीं कर पाएगा। जिससे मनुष्य संस्कार विहीन हो जाएगा। इस पर नारद ने वेदव्यास से कहा कि आप इन समस्त वेदों एवं पुराणों का सार श्रीमद्भागवत महापुराण ग्रंथ लिखिए। नारद से प्रेरित होकर वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की और सर्वप्रथम अपने पुत्र सुखदेव मुनि को श्रीमद्भागवत महापुराण का ज्ञान दिया। जब राजा परीक्षित ने समिक मुनि का अपमान किया। तब समिक मुनि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्यु का श्राप दिया। राजा परीक्षित अपने पुत्र जन्मेजय को राजगद्दी देकर गंगा के तट पर आकर बैठ गए। वहीं पर सुखदेव मुनि ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण सात दिनों तक कराया। शास्त्री ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा ही एकमात्र ऐसा साधन है जो इस कलिकाल में भक्ति एवं ज्ञान प्रदान करता है। इसलिए प्रत्येक घर परिवार में श्रीमद्भागवत ग्रंथ का होना और उसका पाठ किया जाना चाहिए। इस अवसर पर पंडित उमाशंकर पांडे, पंडित हरीश चंद्र भट्ट,पंडित कृष्ण कुमार शास्त्री,पंडित रमेश गोनियाल,पंडित राजेन्द्र पोखरियाल,पंडित निराज कोठारी,पंडित कैलाश चंद्र पोखरियाल,पंडित बचीराम मंडवाल, केशवानंद भट्ट, अजय शर्मा, मोहित शर्मा,शिवम प्रजापति,राहुल धीमान,सागर धवन,पंडित गणेश कोठारी, पवन तनेजा,रिचा शर्मा किरण देवी,अनसुल धवन, बबली शर्मा, गीता चौहान आदि उपस्थित रहे।
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