हरिद्वार। चमनलाल महाविद्यालय लंढौरा में रैगिंग निषेध समिति के तत्वावधान में आयोजित विशेष व्याख्यान में अधिवक्ता और शिक्षाविद डा.सुभाष अग्रवाल ने कहा कि रैगिंग गंभीर प्रकृति का अपराध है। रैगिंग में शामिल होने वाले युवाओं का भविष्य बर्बाद हो सकता है। उन्होंने छात्रों से कहा कि रैगिंग के मामलों में चुप न रहें, सही जगह पर शिकायत जरूर करें। मुख्य वक्ता डा.सुभाष अग्रवाल ने कहा कि दरअसल रैगिंग की घटनाएं सारी सीमाएं तोड़ने पर उतर आई है। उन्हेंने कहा कि भारत में रैगिंग का स्वरूप बदला लेने और पीड़ा पहुंचाने में बदल गया है। ऐसा कोई भी आचरण, चाहे वह बोले गए या लिखित शब्दों से हो या किसी ऐसे कार्य द्वारा,जिसमें किसी अन्य छात्र को परेशान करने, चिढ़ाने,दुर्व्यवहार करने या मनोवैज्ञानिक नुकसान का कारण बनता है,वो रैगिंग की श्रेणी में आता है। इसकी असलियत बहुत ही दुःखद और भयावह है। वैसे, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षण संस्थानों और विद्यालयों में रैगिंग पर पूरी तरह बैन लगाया जा चुका है। मगर फिर भी कुछ सीनियर छात्र नए छात्रों का परिचय लेने की आड़ में उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं और उनका उत्पीड़न करते हैं। ऐसे सभी मामलों में तत्काल शिकायत की जानी चाहिए। यदि संस्थान के स्तर पर राहत न मिले तो पुलिस में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। ऐसे में, पुलिस मामले की जांच करेगी और रैगिंग के लिए जिम्मेदार छात्रों को दंडित करने के लिए कदम उठाएगी। महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष रामकुमार शर्मा ने कहा कि विगत दशकों में रैगिंग के मामले तेजी से बढ़े हैं। रैगिंग उन जगह पर भी है। जहां पर उसे नहीं होना चाहिए। रैगिंग में छात्र अक्सर एक दूसरे की भावनाओं को नहीं समझते। पढ़े-लिखे युवाओं में ऐसी भावना नहीं होनी चाहिए। जिससे किसी दूसरे को हानि हो। प्राचार्य डा.सुशील उपाध्याय ने कहा कि यह विदेश से कॉपी की गई प्रथाओं में से एक है। शुरू में रैगिंग के पीछे का विचार हानि रहित और स्वस्थ मनोरंजन के जरिए नए और पुराने छात्रों के बीच मजबूत संबंध बनाना था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह प्रथा दुःस्वप्न में बदल गई। परिणामस्वरूप हर साल रैगिंग के शिकार लोगों द्वारा आत्महत्या करने,पढ़ाई छोड़ने और मानसिक बीमारी की खबरें आती हैं। सह-शिक्षा संस्थानों में लड़कियों के खिलाफ होने वाले रैगिंग अपराधो में सबूतों के अभाव में दोषियों को दंडित नहीं किया जा पाता है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग पर हर स्तर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, क्योंकि हिंसक रैगिंग के कारण कई मौतें हुई हैं। कार्यक्रम में डा.प्रभात कुमार,डा.इरफान,डा.हिमांशु कुमार,नवीन कुमार,डा.अनिता शर्मा,डा.मीरा चौरसिया आदि उपस्थित रहे। एंटी रैगिंग समिति की प्रभारी डा.दीपिका सैनी ने समिति के कार्यों का विवरण देते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।
हरिद्वार। चमनलाल महाविद्यालय लंढौरा में रैगिंग निषेध समिति के तत्वावधान में आयोजित विशेष व्याख्यान में अधिवक्ता और शिक्षाविद डा.सुभाष अग्रवाल ने कहा कि रैगिंग गंभीर प्रकृति का अपराध है। रैगिंग में शामिल होने वाले युवाओं का भविष्य बर्बाद हो सकता है। उन्होंने छात्रों से कहा कि रैगिंग के मामलों में चुप न रहें, सही जगह पर शिकायत जरूर करें। मुख्य वक्ता डा.सुभाष अग्रवाल ने कहा कि दरअसल रैगिंग की घटनाएं सारी सीमाएं तोड़ने पर उतर आई है। उन्हेंने कहा कि भारत में रैगिंग का स्वरूप बदला लेने और पीड़ा पहुंचाने में बदल गया है। ऐसा कोई भी आचरण, चाहे वह बोले गए या लिखित शब्दों से हो या किसी ऐसे कार्य द्वारा,जिसमें किसी अन्य छात्र को परेशान करने, चिढ़ाने,दुर्व्यवहार करने या मनोवैज्ञानिक नुकसान का कारण बनता है,वो रैगिंग की श्रेणी में आता है। इसकी असलियत बहुत ही दुःखद और भयावह है। वैसे, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षण संस्थानों और विद्यालयों में रैगिंग पर पूरी तरह बैन लगाया जा चुका है। मगर फिर भी कुछ सीनियर छात्र नए छात्रों का परिचय लेने की आड़ में उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं और उनका उत्पीड़न करते हैं। ऐसे सभी मामलों में तत्काल शिकायत की जानी चाहिए। यदि संस्थान के स्तर पर राहत न मिले तो पुलिस में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। ऐसे में, पुलिस मामले की जांच करेगी और रैगिंग के लिए जिम्मेदार छात्रों को दंडित करने के लिए कदम उठाएगी। महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष रामकुमार शर्मा ने कहा कि विगत दशकों में रैगिंग के मामले तेजी से बढ़े हैं। रैगिंग उन जगह पर भी है। जहां पर उसे नहीं होना चाहिए। रैगिंग में छात्र अक्सर एक दूसरे की भावनाओं को नहीं समझते। पढ़े-लिखे युवाओं में ऐसी भावना नहीं होनी चाहिए। जिससे किसी दूसरे को हानि हो। प्राचार्य डा.सुशील उपाध्याय ने कहा कि यह विदेश से कॉपी की गई प्रथाओं में से एक है। शुरू में रैगिंग के पीछे का विचार हानि रहित और स्वस्थ मनोरंजन के जरिए नए और पुराने छात्रों के बीच मजबूत संबंध बनाना था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह प्रथा दुःस्वप्न में बदल गई। परिणामस्वरूप हर साल रैगिंग के शिकार लोगों द्वारा आत्महत्या करने,पढ़ाई छोड़ने और मानसिक बीमारी की खबरें आती हैं। सह-शिक्षा संस्थानों में लड़कियों के खिलाफ होने वाले रैगिंग अपराधो में सबूतों के अभाव में दोषियों को दंडित नहीं किया जा पाता है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग पर हर स्तर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, क्योंकि हिंसक रैगिंग के कारण कई मौतें हुई हैं। कार्यक्रम में डा.प्रभात कुमार,डा.इरफान,डा.हिमांशु कुमार,नवीन कुमार,डा.अनिता शर्मा,डा.मीरा चौरसिया आदि उपस्थित रहे। एंटी रैगिंग समिति की प्रभारी डा.दीपिका सैनी ने समिति के कार्यों का विवरण देते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।
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