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गंगानदी के अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने की आवश्यकता-ज्योतिष्पीठाधीश्वर

 


हरिद्वार। गुरूवार को ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज मातृ सदन में सुबह पहुचे,वहां उन्होने सर्वप्रथम ब्रह्मलीन स्वामी निगमानंद सरस्वती को श्रद्धासुमन अर्पित किए,उन्होनें गुरूदेव स्वामी शिवानंद के समक्ष गंगा नदी के अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने की बात कहीं। इस दौरान जलपुरुष राजेन्द्र सिंह समेत विश्व तीर्थ बचाओ अभियान के सदस्य भी मौजूद रहे। इसके पश्चात विश्व तीर्थ बचाओ अभियान दल,जिसमें दुनिया के सभी महाद्वीपों से आए 12देश के प्रतिभागियों ने अपनी विभिन्न मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार मातृ सदन में गंगा की पूजा अर्चना की। मातृ सदन में बहती गंगा के सामने विश्व की कई पवित्र नदियों का जल एक बर्तन में लाया गया और उनमें गंगा जल मिलाया गया,जो इस बात का प्रतीक है कि सभी नदियों को गंगा का आशीर्वाद मिला और वे पुनर्जीवित हो जाएं। कार्यक्रम के दौरान हुई चर्चा में यह प्रतिपादित हुआ कि दुनिया के विभिन्न देशों में पर्यावरण और नदियों को लेकर जो मान्यताएं हैं,उनमें बहुत समानता है। उनके द्वारा प्रकृति को समर्पित करते हुए जो कर्मकांड इत्यादि भी किये जाते हैं, उनमें भी भारतीय आध्यात्म की झलक और प्रकृति के प्रति प्रेम की एकरसता देखने को मिली। जिस प्रकार भारतीय परंपरा में वट,पीपल,बेलपत्र इत्यादि से भगवान की पूजा अर्चना की जाती है,ठीक उसी प्रकार दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वत से लाए गए कोका पौधे की पवित्र पत्तियों को एक टेनेन्टिन (एक विशेष कपड़ा) के अंदर लपेटा गया और सभी उपस्थितों द्वारा फूंक मारकर अपनी प्राणिक ऊर्जा को आपस में प्रसारित किया गया, जो औपचारिक रूप से यह निर्धारित करता है कि संपूर्ण विश्व एक प्राण से बना है,जो मानवता की एकता को दर्शाता है। इस अनुष्ठान के पश्चात सभी नदियों के जल व इन वनस्पतियों को गंगा में प्रवाहित किया गया। स्वामी शिवानंद जी ने जीवन के मूल को जानने के लिए संतों के पास जाकर धर्म के मूलतत्व को समझने की बात कही। उन्होनें कहा कि यदि कहीं अग्नि की एक चिंगारी भी मौजूद है और उसके संपर्क में सूखे पत्ते आते हैं,तो अपने आप वो आग पकड़ लेगी। ठीक उसी प्रकार कोई साधक जब सदगुरू के संपर्क में आता है तभी जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश संभव है,अन्यथा नहीं। श्री गुरूदेव ने कहा की सभी धर्म और मान्यताओं का सम्मान किया जाना चाहिए,लेकिन साथ में हमें इस बात का भी कभी विस्मरण न हो कि इन सबका उद्देश्य अपने आत्म स्वरूप को जानना है। समारोह के दौरान प्रतिभागियों ने गुरूदेव के समक्ष विश्व की व्यापक समस्याओं को लेकर प्रश्न किये,जिसमें जलवायु परिवर्तन,खाद्य सुरक्षा,तीर्थों का ह्रास,मानवीय मूल्यों का ह्रास इत्यादि शामिल थे। सभी प्रतिभागियों को उनके प्रश्नों के समुचित उत्तर दिए गए।


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