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कर्म करने से ही व्यक्ति के भाग्य की रेखाएं बदल जाती हैं-स्वामी विज्ञानानंद जी महाराज


 हरिद्वार। गीता ज्ञान के मनीषी और गीता को वैज्ञानिकता एवं व्यवहारिक ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करने वाले सतायु संत श्रीगीता विज्ञान आश्रम ट्रस्ट के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज ने कहा है कि सृष्टि के संचालन में मातृशक्ति का अपूर्णनीय योगदान है और सृष्टि की संरचना तब तक ही सुरक्षित है जब तक मातृशक्ति का सम्मान है। वे आज विष्णु गार्डन स्थित श्रीगीता विज्ञान आश्रम में गोवर्धन पूजा के अवसर पर आयोजित अन्नकूट समारोह में पधारे भक्तों को आशीर्वचन दे रहे थे। विश्व की अधिकांश भाषाओं में अनुवादित गीता को भगवान श्रीकृष्ण की वाणी बताते हुए उन्होंने कहा कि गीता व्यक्ति को कर्मयोग की शिक्षा देती है और मानव जीवन में कर्म ही प्रधान है, कर्म करने से ही व्यक्ति के भाग्य की रेखाएं बदल जाती हैं। गीता के उपदेशों को वैज्ञानिकता से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि सृष्टि के रचनाकाल में मंत्र सृष्टि से मानव जीवन का विकास होता था, भगवान श्रीराम हों या माता सीता सभी का प्रादुर्भाव मंत्र सृष्टि से ही हुआ, जबकि सतयुग में ही मनु और शतरूपा से मैथुन सृष्टि का प्रादुर्भाव हो चुका था। मंत्र सृष्टि एवं मैथुन सृष्टि के तुलनात्मक स्वरूप की व्याख्या करते हुए सन्यास परंपरा के अनुभवी संत ने कहा कि मंत्र सृष्टि से उत्पन्न हुई संताने मानवता की प्रतिमूर्ति थीं जबकि मैथुन सृष्टि विसंगति प्रधान बनती जा रही है। सृष्टि के गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि दुराचारी और दुष्पृव्रृति वाले सदाचारी की तुलना में पहले भी शक्तिशाली होते थे और आज भी हैं। पहले भी दुष्टों का दलन करने के लिए देवता देवियों की शरण में जाते थे औरआज भी इस सृष्टि से दुराचरण, आनाचार, भ्रष्टाचार और व्यभिचार को समाप्त करने के लिए मातृशक्ति को ही आगे आना होगा। मानव को सृष्टि का महान सृजक एवं अनुसंधानकर्ता बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य में सृजन और समापन की शक्ति तो है लेकिन संरक्षण और संवर्धन का दायित्व आज भी मातृशक्ति पर ही है। गोवर्धन पूजा में पधारे सभी भाई बहनों से समाज में सह्रदयता और सकारात्मकता का संचार करने का आवाहन करते हुए उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष जीवन की गाड़ी के दो पहिए हैं जिनमें जितना सामजस्य होगा भावी पीढ़ी उतनी ही सभ्य और सौहार्द- मयी बनेगी, हमारे धर्म ग्रंथो और धार्मिक पर्वों से हमें यही शिक्षा मिलती है। धर्म के सापेक्ष आचरण करें और भावी पीढ़ी का भविष्य सुखद बनाएं। तत्पश्चात गोवर्धनैधारी भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाकर सभी भाई बहनों ने संयुक्त रूप से भोजन प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर बाहर से आए भक्तों के साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय श्रद्धालु भी उपस्थित थे।


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