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महर्षि दयानंद सरस्वती ने अंग्रेजी पढ़े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया:स्वामी गोविन्द देव गिरि

एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि,निस्तेजता और विस्मृति को न आने दें:स्वामी रामदेव 


 हरिद्वार। पूज्य स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’के दूसरे दिन का शुभारम्भ पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया। स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कथा में बताया कि जो कार्य भगवान श्रीराम, भगवान श्री कृष्ण ने किया, यदि वैसा ही कार्य शिवाजी महाराज न करते तो न पतंजलि योगपीठ बनता और न हम योग का नाम ले सकते, कुछ और ही कर रहे होते। उन्होंने कहा कि मेरे अंदर सभी महापुरुषों को लेकर बड़ा आदर है लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती के लिए विशेष आदर है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी का एक भी अक्षर पढ़े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया। विशुद्ध वैदिक,विशुद्ध भारतीय प्रेरणा स्वामी दयानंद सरस्वती की ही देन है। देश बड़ा है,अंधकार घना है,अज्ञान पीढ़ियों से जमा है,उनको दूर करने के लिए प्रयासों की भी आवश्यकता है। और इन प्रयासों में पतंजलि योगपीठ का बहुत बड़ा योगदान है। देश जगना चाहिए, अभी पूरा जगा नहीं है। मानसिक गुलामी अभी भी है। अंग्रेेजी के कारण ही देश-विदेश में इस प्रकार के आख्यान (नैरेटिव) निर्माण करके इस गुलामी को पक्का करने का प्रयास आज भी हो रहा है। आज एक बौद्धिक संघर्ष की आवश्यकता है। इस अवसर पर स्वामी रामदेव ने कहा कि आज छत्रपति शिवाजी महाराज ने देश को मात्र राजनैतिक नेतृत्व ही नहीं दिया,अपितु सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,आध्यात्मिक,सांस्कृतिक व वैचारिक दृष्टि से यह राष्ट्र कैसे गौरवशाली बने,परम वैभवशाली बने और युग-युगान्तरों तक इसकी कीर्ति रहे,इसके लिए बड़ा आन्दोलन खड़ा किया। 350वर्ष पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा जो पुरुषार्थ किया गया,वैसा ही पुरुषार्थ 100 करोड़ सनातनधर्मियों को करना है, हम सबको प्रतिबद्ध होना है कि जब एक वीर बालक,ऋषियों का वंशधर अपने विकल्प रहित संकल्प,अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ और पराक्रम के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के चरित्र को,उनके एक- एक सद्गुण को स्वामी जी महाराज अलग-अलग कथानकों, प्रसंगों, शास्त्रीय संदर्भों के माध्यम से, ऐतिहासिक संदर्भों के माध्यम से आपके समक्ष रख रहे हैं। देश की सब माताएँ इन माताओं से प्रेरित होकर उनका अनुसरण करें और हम सब एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि, निस्तेजता और विस्मृति को न आने दें। आज से 35वर्ष पूर्व योग, आयुर्वेद व स्वदेशी की यह यात्रा शून्य से प्रारंभ हुई और आज इसने विराट् स्वरूप ले लिया। पूरे विश्व के ज्ञात इतिहास में जितने अल्प कालखण्ड में यह इतना विशाल सनातन धर्म की सेवा का अनुष्ठान महायज्ञ आगे बढ़ा है, वैसा कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। हमें यहाँ रूकना नहीं है,यात्रा अभी बहुत लम्बी है। हम तो चरैवेति-चरैवेति के उपासक हैं। पूज्य महाराज श्री हमें अपने स्व, अपनी निजता से जोड़कर, प्रतिपल प्रेरणा देकर अपने स्वधर्म व राष्ट्रधर्म के लिए हमें आंदोलित कर रहे हैं। हम अपने वेदधर्म,ऋषिधर्म,सनातनधर्म,राष्ट्रधर्म के साथ पूरी तरह एकात्म होकर ,शाश्वत मूल्यों को अपने जीवन में जीते हुए सेवा कार्य कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज इस बात के प्रतीक हैं कि जो शत्रु पक्ष है,उसका बोध भी हो। यह शत्रु किसी एक पक्ष में नहीं होते,अपितु विधायिका में,कार्यपालिका में,न्यायपालिका में,मीडिया में,शिक्षा में,चिकित्सा में पग-पग पर आपको शत्रुओं का समाना करना पड़ेगा। और उन शत्रुओं के साथ संघर्ष करते हुए एक यौद्धा के रूप में विजयी होकर हम निकलें यह महाराजश्री ने हमको प्रेरणा दी। इस दौरान पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख,अधिकारीगण,विभागाध्यक्ष,पतंजलि विश्व विद्यालय,आचार्यकुल,पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय,पतंजलि गुरुकुल,पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन,पतंजलि कन्या गुरुकुल,वैदिक गुरुकुलम् इत्यादि सभी शिक्षण संस्थान के शिक्षक गण,विद्यार्थीगण,पतंजलि संन्यासाश्रम के समस्त संन्यासी भाई व साध्वी बहनें, पतंजलि योगपीठ के थैरेपिस्ट, चिकित्सक सभी कर्मयोगी भाई-बहन आदि उपस्थित रहे।


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