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प्रकृति में जल,थल,वायु, मृदा सभी तरह से प्रदूषणयुक्त हो चुके हैं

 वेद पुराणों में पृथ्वी को माता कहा गया है : प्रोफेसर दिनेश भट्ट  


हरिद्वार। सोमवार को डीपीएस फेरुपुर द्वारा पृथ्वी दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद् प्रोफेसर दिनेश चंद्र भट्ट ने अपने संबोधन में बताया कि भारतीय संस्कृति में सूर्य और पृथ्वी के पूजन की हजारों साल पुरानी परंपरा रही है किंतु हम अपनी परंपराओं को और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता की ओर अभिमुख हो रहे हैं किंतु जब कोई विदेशी हमारे शास्त्रों में वर्णित बात को अपनी तरह से प्रस्तुत करता है तो फिर हम उस पर गौर करने लग जाते हैं-यही बात पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाने वाले इस पर्व पर भी लागू होती है। करीब 60-62 साल पूर्व करसनन नामक व्यक्ति ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम साइलेंट स्प्रिंग था। उसमें समझाया गया था कि भविष्य में बसंत शायद आएगा ही नहीं और नहीं पक्षी कलरव करेंगे और ना ही भंवरे भंवरे फूलों पर गुंजन करेंगे। दरअसल वे होंगे ही नहीं क्योंकि फसलों को बचाने और उत्पादन बढ़ाने के लिए जिस तरह से कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है उसके बाद तो पशु पक्षियों क्या मनुष्य के बचने की भी उम्मीद नहीं दिख रही है। प्रोफेसर भट्ट ने कहा कि गिद्ध और गोरिया इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है जो लगभग विलुप्तप्राय होने जा रहे हैं। उन्होंने विस्तार से बताया कि प्रकृति में जल,थल,वायु, मृदा सभी तरह से प्रदूषणयुक्त हो चुके हैं। ध्वनि प्रदूषण,मोबाइल पॉल्यूशन और लाइट पॉल्यूशन का भी अपना असर दिख रहा है। वर्तमान में स्वास्थ्य को चुपके-चुपके सबसे अधिक खतरा तो माइक्रो प्लास्टिक पॉल्यूशन से हो रहा है जो कैंसर,अल्जाइमर,नपुंसकता जैसे बीमारियों के कारक बन गया है। उन्होंने विद्यार्थियों को समझाया कि इस पृथ्वी ग्रह को सूर्य से ही ऊर्जा प्रदान होती है और इस ऊर्जा को केमिकल ऊर्जा में बदलने का कार्य पादप समुदाय करता है यानी वनस्पतियों के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा मनुष्य तक फलों,सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से पहुंचती है। शुद्ध वायु से प्राप्त ऑक्सीजन हम अपने फेफड़ों के माध्यम से रक्त में पहुंचाते हैं और भोजन पचाने के बाद पाचन के कण यानी मॉलेक्युल हमारी रक्त संचार सिस्टम में पहुंचते हैं। वहां पर ऑक्सीजन और भोजन के मॉलिक्यूल के रूप में प्राप्त ग्लूकोज का ऑक्सीडेशन होता है जिसके फलस्वरूप एनर्जी यानी एटीपी हमें प्राप्त होती है और यही एनर्जी हमारे शरीर और मस्तिष्क के सारे कार्यों को करती है और इसी से हमारे प्राणों की भी रक्षा होती है। उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया न जाने कितने लाखों सालों से अनवरत चलती आ रही है। सूर्य चूंकि हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं,इसलिए हमारे यहां सूर्य नमस्कार करने की परंपरा रही है और पृथ्वी में सारी वनस्पतियां,पुष्प,औषधियां एवं हर तरह की फसले उगती है जो हमें पोषण प्रदान करते हैं। इसीलिए पृथ्वी को माता कहा गया है और पृथ्वी को प्रातः काल उठकर नमन करने की परंपरा हमारे यहां रही है। हमें वैज्ञानिक दृष्टि से भी अब इन्हीं परंपराओं को अपनाना चाहिए जिससे हम अपनी माता पृथ्वी को प्रदूषित होने से बचा सके और प्रकृति के सभी घटकों की रक्षा कर सके। क्योंकि वायु हमें प्राण शक्ति देती है अतः वायु को भी प्रदूषित नहीं करना चाहिए और मोबाइल द्वारा निकलने वाली इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन से हमें बचाना चाहिए अतः मोबाइल का उपयोग केवल वार्ता के लिए करना चाहिए ना कि एंटरटेनमेंट के लिए। प्रोफेसर भट्ट ने कहा कि पृथ्वी दिवस एक पवित्र उत्सव के रूप में सभी राष्ट्रों द्वारा मनाया जाने लगा है ताकि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने का संदेश सभी देश के नागरिकों तक साझा किया जा सके। उन्होंने आगे कहा कि करसन से प्रेरणा पाकर पहले पृथ्वी दिवस की घोषणा सन 1976 को सेनफ्रांसिस्को के मेयर जोसेफ के द्वारा जारी की गई थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता डीपीएस के प्रो.वाइस चेयरपर्सन अशोक त्रिपाठी ने किया इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र अग्रवाल ने अपनी शुभकामनाएं सभी शिक्षक शिक्षिकाओं व छात्रों को प्रदान की और उनसे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने की अपेक्षा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अशोक त्रिपाठी ने पर्यावरण के सभी पहलुओं पर विचार रखते हुए छात्रों को प्रेरणा प्रदान की कि हमें वृक्षारोपण कर हवा को शुद्ध रखने में अपना योगदान देना चाहिए। विद्यार्थियों द्वारा इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। कार्यक्रम के अंत में प्रिंसिपल शिवानी भास्कर ने मैनेजमेंट एवं फैकेल्टी व छात्रों का धन्यवाद ज्ञापन किया।


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