संतों ने श्रद्धा व उल्लास से मनायी शंकराचार्य जयंती
हरिद्वार। श्री आद्य जगद्गरु शंकराचार्य समिति के तत्वावधान में संतों,महंतों,मण्डलेश्वरों व भक्तों की मौजूदगी में शंकराचार्य जयंती श्रद्धा व उल्लास के साथ मनायी गयी। कार्यक्रम के अंतर्गत सर्वप्रथम समिति के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज के सानिध्य में शंकराचार्य चौक पर स्थित आदि शंकराचार्य भगवान के श्रीविग्रह का पूजन अर्चन किया गया। इसके पश्चात श्री सूरत गिरि बंगला गिरिशानंद आश्रम में आदि शंकराचार्य भगवान का पूजन-अर्चन किया गया। तत्पश्चात श्रीमानव कल्याण आश्रम में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर आदि शंकराचार्य भगवान को संतों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए समिति के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज ने कहा कि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य का जन्म 2531वर्ष पूर्व केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्यम्बा था। शिवगुरु शास्त्रों के ज्ञाता थे और उन्होंने अपने पुत्र का नाम शंकर रखा,जो आगे चलकर आदी गुरु शंकराचार्य कहलाए। वह बहुत ही कम उम्र में वेदों के जानकार और संन्यासी बन गए। मात्र 32साल की उम्र में उन्होंने अपना देह त्याग दिया। उन्होंने कहा कि भाष्यकार श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धांत और हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित करने का कार्य किया। साथ ही उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। उन्होंने धर्म के नाम पर फैलाई जा रही तरह-तरह की भ्रांतियों को मिटाने का काम किया। लोगों को कुरीतियों के चंगुल से बाहर निकालकर सही शिक्षा देने का कार्य आदि शंकराचार्य ने ही किया। उन्होंने कहा कि आज जो सनातन बचा हुआ है। वह आदि भगवान शंकराचार्य की ही देन है। कहा कि भगवान शंकराचार्य के बताए मार्ग का अनुसरण करना ही उनके प्रति सच्चे भाव से श्रद्धासुमन अर्पित करने के समान होगा। स्वामी राजराजेश्वराश्रम व समिति के महामंत्री श्रीमहंत देवानंद गिरि महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किया। इस अवसर पर महामण्डलेश्वर स्वामी दिव्यानंद,म.म.स्वामी रामेश्वरानंद,म.म.स्वामी गिरधर गिरि,स्वामी उमानंद गिरि,स्वामी कमलानंद गिरि,सुधीर समेत अनेक संत,महंत,मण्डलेश्वर,विप्रजन व भक्तगण मौजूद रहे।
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