भारत की एकता अखण्डता कायम रखने में संत महापुरूषों की अहम भूमिका रही--श्रीमंहत रविन्द्र पुरी
हरिद्वार। आनन्दमयीपुरम दक्ष रोड़ कनखल स्थित श्रीमहर्षि ब्रह्महरि उदासीन आश्रम में आयोजित संत समागम की अध्यक्षता महामंडलेश्वर स्वामी हरी चेतनानंद महाराज ने की। इस दौरान मुख्य अतिथि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि संत का जीवन निर्मल गंगा के समान होता है। ब्रह्मलीन श्री महर्षि ब्रह्महरि महाराज ने सदैव मानव कल्याण में अपना जीवन समर्पित रखा। उनके आदर्शों को अपनाकर समाज उत्थान में योगदान करे। संत समाज लगातार देश दुनिया में सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार कर रहा है। उन्होने कहा कि भारत की एकता अखण्डता कायम रखने में संत महापुरूषों की अहम भूमिका रही है। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि श्री महर्षि ब्रह्ममहरि उदासीन आश्रम से मानव कल्याण के प्रकल्प जारी हैं। संत हमेशा ही सेवा के कार्यों में अपना योगदान देता है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति हमारी पहचान है। ब्रह्मलीन श्री महर्षि ब्रह्म हरि महाराज ने हमेशा ही मानव उत्थान के कार्यों में योगदान दिया है। उनके बताए हुए मार्गाे का अनुसरण करते हुए मानव सेवा में अपना योगदान दें। आश्रम के परमाध्यक्ष महंत दामोदर शरण दास महाराज ने कहा कि गुरु ही परमात्मा का दूसरा स्वरूप है जो शिष्य अपने गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलते हैं गुरु उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु से बढ़कर संसार में और कोई चीज नहीं है। गुरु के मार्ग का अनुसरण कर समाज उत्थान में अपना योगदान दे। उन्होंने संत समागम में पधारे सभी संत महापुरुषों का फूल माला पहनकर स्वागत कर आशीर्वाद लिया कथा व्यास स्वामी रविदेव शास्त्री ने कहा कि धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है। जो व्यक्ति दूसरों का बुरा करता है। वह कभी जीवन में सुख प्राप्त नहीं कर सकता है। क्योंकि सच्चाई की राह पर चलने वालों का हमेशा ईश्वर कल्याण करते हैं। महामंडलेश्वर स्वामी रामेश्वरनंद सरस्वती महाराज ने कहा कि जीवन में मनुष्य को सदा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए क्योंकि धर्म ही एक ऐसा अद्भुत चमत्कारी मंत्र है जिसे जपने से मनुष्य भवसागर से पर हो जाता है। जीवन में सत्य बोलने पर कुछ दिक्कतें तो जरूर आती है। मगर ईश्वर उन कठिनाइयों को पल भर में ही दूर कर देते ह।ै इस दौरान स्वामी प्रेमानंद,स्वामी भगवत स्वरूप,स्वामी कपिल मुनि महाराज,मंहत राघवेंद्र दास,डॉक्टर विष्णु दत्त राकेश,मंहत गोविंद दास,मंहत मुनि,मंहत प्रेमदास,स्वामी कैलाशानंद,मंहत गंगादास,स्वामी शिवानंद,स्वामी सुदीक्षण मुनी मंहत सूरजदास,महंत बिहारी शरण,मंहत दुर्गा दास,बाबा हठयोगी,मंहत मुरलीधर,मंहत बलवंत दास,महंत अमृत मुनी सहित सभी तेहरा अखाड़ों के संत मंहतो ने ब्रह्मलीन महर्षि ब्रह्महरि उदासीन महाराज को दिव्य अत्मा बताया।
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