हरिद्वार। मैक्स सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल देहरादून ने विश्व पार्किंसन दिवस पर इसके लक्षण, उपचार और सर्जिकल विकल्पों के बारे में लोगों को जागरूक किया। पार्किंसन रोग एक निरंतर विकसित होने वाला न्यूरो संबंधी विकार है,जो व्यक्ति की शारीरिक गतिशीलता को प्रभावित करती है और उसके दैनिक जीवन पर गहरा असर डाल सकती है। यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है और समय के साथ लक्षणों में वृद्धि होती है।अल्ज़ाइमर के बाद, पार्किंसन दुनिया की दूसरी सबसे आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी मानी जाती है।डा.शमशेर द्दिवेदी,डायरेक्टर न्यूरोलॉजी मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल,देहरादून ने बताया कि पार्किंसन रोग एक न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका संबंधी) बीमारी है,जो तब होती है जब मस्तिष्क की वे कोशिकाएँ,जो डोपामिन नामक रसायन बनाती हैं,धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं या डोपामिन का स्तर कम होने लगता है।डोपामिन एक ऐसा रसायन हैजो शरीर की गतिविधियों,संतुलन और गति को नियंत्रित करने में मदद करता है। जब इसका स्तर कम होता है,तो व्यक्ति को चलने,बोलने,हाथ-पैर हिलाने और अन्य सामान्य काम करने में कठिनाई होने लगती है।इस बीमारी का सटीक कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन कई अध्ययनों से पता चला है कि जेनेटिक कारणों के साथ-साथ कुछ पर्यावरणीय कारक भी इस रोग के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। डा.शमशेर द्दिवेदी ने बताया कि इस रोग के लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं और शुरुआती चरणों में इन्हें पहचानना कठिन हो सकता है। पार्किंसन रोग के कुछ सामान्य लक्षणों में हाथ,उंगलियों या ठोड़ी में अनियंत्रित कंपन शामिल है। ब्रैडीकिनेसिया नामक स्थिति में शरीर की गति धीमी हो जाती है। जिससे रोजमर्रा के काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। मांसपेशियों में जकड़न और शरीर के अंगों में कठोरता व असहजता महसूस होती है। इसके अलावा,मरीजों को संतुलन बनाए रखने में कठिनाई होती है। जिससे चलने-फिरने में अस्थिरता आती है और गिरने का खतरा बढ़ जाता है।इस रोग से प्रभावित व्यक्ति की आवाज धीमी या अस्पष्ट हो सकती है और लिखावट में भी बदलाव आने लगता है। जिससे लिखना कठिन हो जाता है। डॉ.द्दिवेदी ने बताया कि पार्किंसन का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है,लेकिन विभिन्न उपचार इसके लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। जिसमें पहले दवाइयों और मूवमेंट थेरेपी से इसे नियंत्रित किया जाता है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि 5 से 6 साल बाद दवाईयों का असर कम होने लगता है,फिर मरीज को सर्जरी ही करानी पड़ती है। कुछ ऐसे मरीज भी होते हैं, जिन पर दवाइयां असर नहीं करती,उनके लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन एक प्रभावी सर्जिकल उपचार है। इस प्रक्रिया में ब्रेन के कुछ हिस्सों में एक छोटा इम्पलांट प्रत्यारोपित किया जाता है,जो इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजकर असामान्य ब्रेन गतिविधियों को नियंत्रित करता है।यह प्रक्रिया कंपनों,जकड़न और धीमी गति जैसी समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।डा.द्विवेदी ने कहा कि आज चिकित्सा क्षेत्र में लगातार हो रहे शोध और तकनीकी विकास की बदौलत पार्किंसन रोग के इलाज के बेहतर विकल्प सामने आ रहे हैं। इन आधुनिक तरीकों से न केवल लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि मरीजों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।समय पर पहचान और सही इलाज इस रोग को नियंत्रित करने में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं।
हरिद्वार। मैक्स सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल देहरादून ने विश्व पार्किंसन दिवस पर इसके लक्षण, उपचार और सर्जिकल विकल्पों के बारे में लोगों को जागरूक किया। पार्किंसन रोग एक निरंतर विकसित होने वाला न्यूरो संबंधी विकार है,जो व्यक्ति की शारीरिक गतिशीलता को प्रभावित करती है और उसके दैनिक जीवन पर गहरा असर डाल सकती है। यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है और समय के साथ लक्षणों में वृद्धि होती है।अल्ज़ाइमर के बाद, पार्किंसन दुनिया की दूसरी सबसे आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी मानी जाती है।डा.शमशेर द्दिवेदी,डायरेक्टर न्यूरोलॉजी मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल,देहरादून ने बताया कि पार्किंसन रोग एक न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका संबंधी) बीमारी है,जो तब होती है जब मस्तिष्क की वे कोशिकाएँ,जो डोपामिन नामक रसायन बनाती हैं,धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं या डोपामिन का स्तर कम होने लगता है।डोपामिन एक ऐसा रसायन हैजो शरीर की गतिविधियों,संतुलन और गति को नियंत्रित करने में मदद करता है। जब इसका स्तर कम होता है,तो व्यक्ति को चलने,बोलने,हाथ-पैर हिलाने और अन्य सामान्य काम करने में कठिनाई होने लगती है।इस बीमारी का सटीक कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन कई अध्ययनों से पता चला है कि जेनेटिक कारणों के साथ-साथ कुछ पर्यावरणीय कारक भी इस रोग के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। डा.शमशेर द्दिवेदी ने बताया कि इस रोग के लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं और शुरुआती चरणों में इन्हें पहचानना कठिन हो सकता है। पार्किंसन रोग के कुछ सामान्य लक्षणों में हाथ,उंगलियों या ठोड़ी में अनियंत्रित कंपन शामिल है। ब्रैडीकिनेसिया नामक स्थिति में शरीर की गति धीमी हो जाती है। जिससे रोजमर्रा के काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। मांसपेशियों में जकड़न और शरीर के अंगों में कठोरता व असहजता महसूस होती है। इसके अलावा,मरीजों को संतुलन बनाए रखने में कठिनाई होती है। जिससे चलने-फिरने में अस्थिरता आती है और गिरने का खतरा बढ़ जाता है।इस रोग से प्रभावित व्यक्ति की आवाज धीमी या अस्पष्ट हो सकती है और लिखावट में भी बदलाव आने लगता है। जिससे लिखना कठिन हो जाता है। डॉ.द्दिवेदी ने बताया कि पार्किंसन का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है,लेकिन विभिन्न उपचार इसके लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। जिसमें पहले दवाइयों और मूवमेंट थेरेपी से इसे नियंत्रित किया जाता है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि 5 से 6 साल बाद दवाईयों का असर कम होने लगता है,फिर मरीज को सर्जरी ही करानी पड़ती है। कुछ ऐसे मरीज भी होते हैं, जिन पर दवाइयां असर नहीं करती,उनके लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन एक प्रभावी सर्जिकल उपचार है। इस प्रक्रिया में ब्रेन के कुछ हिस्सों में एक छोटा इम्पलांट प्रत्यारोपित किया जाता है,जो इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजकर असामान्य ब्रेन गतिविधियों को नियंत्रित करता है।यह प्रक्रिया कंपनों,जकड़न और धीमी गति जैसी समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।डा.द्विवेदी ने कहा कि आज चिकित्सा क्षेत्र में लगातार हो रहे शोध और तकनीकी विकास की बदौलत पार्किंसन रोग के इलाज के बेहतर विकल्प सामने आ रहे हैं। इन आधुनिक तरीकों से न केवल लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि मरीजों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।समय पर पहचान और सही इलाज इस रोग को नियंत्रित करने में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं।
Comments
Post a Comment