हरिद्वार। जनपद के बहादराबाद ब्लॉक के छोटे से गाँव रावल महदू की बोबी की कहानी, दृढ़ संकल्प और ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण है। पहले, बोबी की आजीविका बहुत सीमित थी और वह सूक्ष्म स्तर पर मशरूम का उत्पादन करती थीं। लेकिन,ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के सहयोग से,उन्होंने अब मशरूम की खेती के माध्यम से आत्मनिर्भरता की एक नई इबारत लिखी है।यह परिवर्तन ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के हस्तक्षेप और सहयोग से संभव हुआ है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना की ब्लॉक स्तरीय टीम ने बोबी की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया। टीम के मार्गदर्शन में,बोबी ने मशरूम की खेती को बड़े स्तर पर करने का निर्णय लिया,जो उनके लिए आय का एक नया और अप्रयुक्त स्रोत था।परियोजना ने बोबी को कुल 25,000की अनुदान राशि प्रदान की,जबकि बोबी ने स्वयं के बचत से 20,000 का योगदान दिया और 55,000का बैंक ऋण भी प्राप्त किया।कुल मिलाकर 1,00,000 की लागत से यह उद्यम शुरू किया गया।इस सहायता से बोबी ने बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती शुरू की ,जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पहले सूक्ष्म स्तर पर मशरूम की खेती से उन्हें मासिक आय लगभग 5,000 थी,लेकिन अब वे मशरूम की खेती से प्रति माह लगभग 18,750 से भी अधिक की आय अर्जित कर रही हैं। बोबी,जो श्रद्धा सीएलएफ के मिलाप ग्राम संगठन के श्याम स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं,ये अपने समूह की सक्रिय सदस्य भी हैं,जो अब अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। उनकी सफलता की कहानी यह दर्शाती है कि सही मार्गदर्शन,वित्तीय सहायता और व्यक्तिगत दृढ़ संकल्प के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी कैसे बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
हरिद्वार। जनपद के बहादराबाद ब्लॉक के छोटे से गाँव रावल महदू की बोबी की कहानी, दृढ़ संकल्प और ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण है। पहले, बोबी की आजीविका बहुत सीमित थी और वह सूक्ष्म स्तर पर मशरूम का उत्पादन करती थीं। लेकिन,ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के सहयोग से,उन्होंने अब मशरूम की खेती के माध्यम से आत्मनिर्भरता की एक नई इबारत लिखी है।यह परिवर्तन ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के हस्तक्षेप और सहयोग से संभव हुआ है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना की ब्लॉक स्तरीय टीम ने बोबी की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया। टीम के मार्गदर्शन में,बोबी ने मशरूम की खेती को बड़े स्तर पर करने का निर्णय लिया,जो उनके लिए आय का एक नया और अप्रयुक्त स्रोत था।परियोजना ने बोबी को कुल 25,000की अनुदान राशि प्रदान की,जबकि बोबी ने स्वयं के बचत से 20,000 का योगदान दिया और 55,000का बैंक ऋण भी प्राप्त किया।कुल मिलाकर 1,00,000 की लागत से यह उद्यम शुरू किया गया।इस सहायता से बोबी ने बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती शुरू की ,जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पहले सूक्ष्म स्तर पर मशरूम की खेती से उन्हें मासिक आय लगभग 5,000 थी,लेकिन अब वे मशरूम की खेती से प्रति माह लगभग 18,750 से भी अधिक की आय अर्जित कर रही हैं। बोबी,जो श्रद्धा सीएलएफ के मिलाप ग्राम संगठन के श्याम स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं,ये अपने समूह की सक्रिय सदस्य भी हैं,जो अब अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। उनकी सफलता की कहानी यह दर्शाती है कि सही मार्गदर्शन,वित्तीय सहायता और व्यक्तिगत दृढ़ संकल्प के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी कैसे बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
Comments
Post a Comment