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देवर्षि नारद, संवाद और संदेश के मूर्तिमान स्वरूप-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

 नारद जयंती, संवाद, सद्भाव और संस्कार का उत्सव


ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में बड़े ही श्रद्धाभाव से नारद जयंती धूमधाम से मनायी।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ऋषियों की पावन परंपरा में देवर्षि नारद जी का अद्वितीय स्थान हैं।वे केवल एक महान तपस्वी और ज्ञानी ही नहीं,बल्कि संवाद,संगीत और सद्भाव के ऐसे दिव्य प्रतीक हैं,जिनका जीवन आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक है।नारद जी लोक- कल्याण के लिए तीनों लोकों में विचरण करते थे।उनके पास ब्रह्मा जी द्वारा प्रदत्त वीणा थी,और वे“नारायण नारायण”का संकीर्तन करते हुए देवताओं,ऋषियों,असुरों और साधारण जनों के बीच संवाद का सेतु बनते थे।उनका जीवन हमें सिखाता है कि संवाद केवल सूचना देने का माध्यम नहीं,बल्कि एक संवेदना का माध्यम है,जहाँ हम प्रेम,भक्ति और ज्ञान को बाँट सकते हैं।वे संसार के पहले संवाददाता,पहले संप्रेषक और पहले“सत्य के प्रचारक” थे।आज जब दुनिया भर में कई बार गलत सूचना,टकराव और संवादहीनता की स्थिति बनी हुई है,तब नारद जी हमें यह सिखाते हैं कि संवाद कैसा हो सच पर आधारित,प्रेम से प्रेरित और जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो।नारद जी संवाद के माध्यम से केवल घटनाओं की जानकारी नहीं देते थे,वे उस संवाद के माध्यम से नायक के भीतर आत्मबोध,ज्ञान और जिम्मेदारी का भाव भी जागृत करते थे। वे विवाद नहीं,विवेक और समाधान के वाहक थे।उनका संवाद सदैव सत्य,धर्म और दैवीय उद्देश्य के लिए होता था।वे किसी को भड़काते नहीं थे,बल्कि परिस्थिति का आईना दिखाते थे ताकि लोग आत्ममंथन कर सकें। मीडिया,सोशल मीडिया और पत्रकारिता के लिये नादर जी ने एक आदर्श प्रस्तुत किया और संदेश दिया कि संवादकर्ता को निष्पक्ष,संवेदनशील और सच्चाई के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जहाँ संवाद है,वहाँ समाधान है।जहाँ शुद्ध विचारों का आदान-प्रदान है,वहीं शांति,सहअस्तित्व और समरसता है।आज का समय“ सुनने”से अधिक“शोर”का हो गया है।हमें फिर से नारद मुनि से प्रेरणा लेकर मौन में,मनन में और प्रेमपूर्वक संवाद में लौटना होगा। समाज में संवाद के माध्यम से सौहार्द,समझ और सहयोग को बढ़ावा देने का यह शुभ अवसर है।भारतीय संस्कृति में तो नारद जी जैसे संवादवाहक को “देवर्षि” कहा गया,देवताओं में भी सबसे ऊँचा स्थान।जो बताता है कि संवाद एक दैविक प्रक्रिया है,और संवादकर्ता को समाज की चेतना का वाहक बनना होगा। देवर्षि नारद आज भी जीवंत हैं,हर उस व्यक्ति में जो भक्ति से जुड़ा है,सत्य से समर्पित है और सेवा के पथ पर अग्रसर है।नारद जयंती पर हम सभी को यह संकल्प लेना होगा कि हम संवाद का उपयोग समाज को जोड़ने,जागरूक करने और जनकल्याण के लिए करेंगे।नारद जी को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।  


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