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परमार्थ निकेतन अध्यक्ष,स्वामी चिदानन्द सरस्वती कथावाचक जया किशोरी की दिव्य भेंटवार्ता

हरित कथा का दिव्य संदेश देते हुये रूद्राक्ष का पौधा किया भेंट


ऋषिकेश/देहरादून। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और प्रसिद्ध कथावाचक जया किशोरी की एक अत्यंत प्रेरणादायी और सारगर्भित भेंटवार्ता देहरादून में हुई। सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का भव्य समापन अत्यंत श्रद्धा,भक्ति और आध्यात्मिक उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ।इस विशेष अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती आज के युग में कथा की प्रासंगिकता,युवाओं की भूमिका तथा समाज में सकारात्मक परिवर्तन की संभावनाओं पर चर्चा की।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कथा धार्मिक अनुष्ठान के साथ आत्मशुद्धि,जीवननिर्माण और समाज कल्याण का सशक्त माध्यम है।यह हमारी जड़ों से,हमारे मूल्यों,हमारी संस्कृति और संस्कारों से हमें जोड़ती है। आज जब युवा सोशल मीडिया की चकाचौंध में अपने अस्तित्व को खोज रहे हैं,ऐसे में कथा उन्हें दिशा देती है,दृष्टि देती है और जीवन में सच्चा उद्देश्य प्रदान करती है। कथा केवल शब्दों का प्रवाह नहीं,यह जीवन को दिशा देने वाली ऊर्जा है।जब तक हम कथा को सुनते है तो यह बाहरी अनुभव रहेगी। पर जब हम कथा को जीवन में उतारेंगे, तब वह हमारा जीवन बन जाएगी।यही सनातन संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है,वह जीवन को ही साधना बना देती है।पर्यावरण चेतना का अनुपम संदेश देते हुए स्वामी जी ने जया किशोरी को एक रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि हमारी संस्कृति कथा और कर्तव्य दोनों को साथ लेकर चलती है और आज के युग में पर्यावरण संरक्षण ही सबसे बड़ा कर्तव्य है। आज के युग में,जब प्रकृति संकट में है,तब पर्यावरण संरक्षण ही सबसे बड़ा कर्तव्य बन गया है।कथा हमें हमारे मूल,हमारी जड़ों और हमारे दायित्वों की याद दिलाती है। जब हम श्रीमद्भागवत व दिव्य कथाओं को सुनते हैं, तो भगवान की लीलाएँ के साथ धर्म, सेवा और प्रकृति के प्रति संवेदना का संदेश भी ग्रहण करते हैं।हर कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति वही है जो सेवा और संरक्षण से जुड़ी हो।वर्तमान समय में पौधारोपण,जल-संरक्षण और प्लास्टिक मुक्ति जैसे प्रयास केवल पर्यावरण के नहीं,बल्कि हमारी संस्कृति और कर्तव्य के भी प्रतीक बन चुके हैं। इसलिए जब भी कथा हो,कम से कम पांच पौधे जरूर लगाएं,यह कथा को कर्म में बदलने का सबसे सुंदर माध्यम है।


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