परमार्थ निकेतन में आध्यात्मिक संवाद की गूंज
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन,ऋषिकेश के दिव्य गंगा तट पर आयोजित मासिक श्रीराम कथा के तीसरे दिन का आयोजन ‘दिव्य संचार’ को समर्पित किया। आज विश्व दूरसंचार दिवस केवल तकनीकी प्रगति का उत्सव नहीं,बल्कि भीतर की यात्रा शुरू करने का आमंत्रण भी है।जहां संचार के आधुनिक माध्यम हमें एक-दूसरे से जोड़ते हैं,वहीं दिव्य संचार आत्मा से आत्मा का संवाद है,चेतना से चेतना का जागरण है,और अंतर्मन की यात्रा का आरंभ है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज जब संचार के साधन इतनी तीव्र गति से विकसित हो रहे हैं,तब हमें यह भी याद रखना होगा कि सबसे महत्त्वपूर्ण संवाद वह है जो स्वयं से होता है।दिव्य संचार आत्मा का आत्मा से मिलन है,भीतर की मौन भाषा को सुनना है।उन्होंने कहा कि भारत भूमि ने संचार को केवल सूचना का आदान-प्रदान नहीं माना,बल्कि इसे ‘ऋषियों की साधना ’,‘मंत्रों की ध्वनि’,‘शब्द ब्रह्म’ और ‘मौन की महिमा’ के रूप में देखा है।भारत का हर शास्त्र, हर मंत्र और हर चौपाई दिव्य संचार का माध्यम है।दूरसंचार हमें दुनिया से जोड़ता है,लेकिन दिव्य संचार हमें स्वयं से,संस्कृति से और सनातन मूल्यों से जोड़ता है। मोबाइल के नेटवर्क से बड़ा नेटवर्क है ध्यान और मौन का उसमें आत्मा की कॉल कभी ड्रोप नहीं होती। स्वामी जी ने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि जितना समय हम सोशल मीडिया पर बिताते हैं,उसमें से कुछ पल सोल मीडिया अर्थात् आत्मा के मीडिया के लिए निकालें।ध्यान,मंत्र,और आत्म निरीक्षण से बड़ा कोई संचार नहीं है।भारत की संस्कृति ने हमेशा बाहरी संवाद से अधिक भीतरी संवाद को प्राथमिकता दी है। आज जब हम आधुनिक संचार की दुनिया में 5 जी और स्पेस नेटवर्क्स की बात कर रहे हैं,तब भारत की संस्कृति हमें 5 डी ध्यान,दिव्यता,दया,धर्म और द्रष्टि की ओर बुला रही है। विश्व दूरसंचार दिवस के अवसर पर हमें यह समझना होगा कि जितना जरूरी बाहरी संवाद है,उससे कहीं अधिक आवश्यक है आत्मसंवाद। जब तक मनुष्य अपने भीतर से नहीं जुड़ेगा,तब तक वह बाहरी दुनिया में कितना ही सफल क्यों न हो जाए ,भीतर से खाली ही रहेगा। संत श्री मुरलीधर जी ने मानस कथा में बताया कि भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन दिव्य संचार का प्रतीक है।जब श्रीराम वन में जाते हैं,तो वे प्रकृति से, वानरों से, वनवासियों से,यहाँ तक कि राक्षसों से भी संवाद करते हैं।परंतु यह संवाद केवल वाणी का नहीं होता,यह आत्मा का होता है,यही है दिव्य संचार।श्रीराम जी का चरित्र हमें सिखाता है कि जब हम मौन होकर भीतर झांकते हैं, तब हमें अपने जीवन का सत्य,लक्ष्य और कर्तव्य स्पष्ट दिखता है। रामकथा केवल कहानी नहीं,चेतना को झंकृत करने वाला दिव्य संवाद है।
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