परमार्थ निकेतन में विशेष यज्ञ कर अर्पित की श्रद्धाजंलि
ऋषिकेश। वीरता,राष्ट्रभक्ति और मातृभूमि के प्रति निष्ठा के अमर प्रतीक महाराणा प्रताप की जयंती पर परमार्थ निकेतन में एक विशेष यज्ञ कर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की। महाराणा प्रताप की जयंती पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप जैसे योद्धा विरले ही होते हैं। वे वास्तव में मातृभूमि के सच्चे भक्त थे।उन्होंने अपने आत्मसम्मान,धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिये हर कठिनाई को झेला।आज जब भारत की सेनाएं आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कार्यवाही कर रही हैं,यह उसी राष्ट्रधर्म की पुनर्पुष्टि है,जिसके लिए महाराणा प्रताप ने जीवन भर संघर्ष किया था।महाराणा प्रताप के जन्मदिवस पर जो श्रद्धाजंलि हमारे जाबांज़ सैनिकों ने महाराणा प्रताप को दी है वह अद्भुत है।आपरेशन सिंदूर जैसा निर्णायक कदम उस स्वाभिमान की परंपरा को आधुनिक रूप में आगे बढ़ा रहा हैं,जिसे महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में जिया। आज जब हमारी सेनाएं देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अदम्य साहस और संकल्प के साथ खड़ी हैं,तो वह वास्तव में मेवाड़ के उस महान योद्धा को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित हैं।स्वामी जी ने कहा कि यह एक संयोग नहीं,संकल्प है कि महाराणा प्रताप की जयंती पर भारत की सेना उनकी परंपरा को अपने शौर्य से पुनःजीवंत कर रही है।महाराणा प्रताप का तेज और तप,आज हमारे सैनिकों की आंखों में झलकता है,उनके हर कदम में दिखता है।यह भारत का नया आत्मविश्वास है,जो कहता है हम न झुकेंगे,न रुकेंगे।हम महाराणा प्रताप की संतान हैं।यह केवल इतिहास का सम्मान नहीं,बल्कि उस परंपरा को जीने का संकल्प है।यह भारत का प्रण है,जहां महाराणा प्रताप की जयंती केवल उत्सव नहीं,प्रेरणा का आह्वान है,और हमारी सेनाएं उसका उत्तर हैं। आज भारत की तीनों सेनाएं और हमारी सरकार जिस प्रकार से देश की अस्मिता की रक्षा के लिए सशक्त कदम उठा रही हैं,वह हमारे इतिहास की पुनरावृत्ति है।यह केवल एक जवाब या बदला नहीं,बल्कि एक युगांतरकारी परिवर्तन की शुरुआत है।सभी को संकल्प लेना होगा कि हम अपने कर्म,सेवा और समर्पण से राष्ट्र को सशक्त बनाएंगे और किसी भी भ्रम व बहकाव से उपर उठकर राष्ट्र प्रथम की भावना से अपने राष्ट्र के साथ खड़े रहेंगे।
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