परमार्थ निकेतन में मासिक श्रीरामकथा का दिव्य शुभारंभ
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में माँ गंगा की निर्मल धारा की तरह मानस कथा की दिव्य ज्ञान धारा प्रवाहित हो रही है। मासिक श्रीरामकथा संत मुरलीधर जी के श्रीमुख से सरल, भावपूर्ण और सजीव शैली में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर रही है। श्रीरामकथा का उद्घाटन महामंडलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज और कार्ष्णि पीठाधीश्वर गुरुशरणानंद महाराज के आशीर्वाद से स्वामी चिदानन्द सरस्वती एवं आचार्य बालकृष्ण के पावन सान्निध्य में हुआ। 15 से 17जून, 2025 प्रतिदिन प्रातः 9ः300 बजे से दोपहर 1ः00 बजे तक आयोजित हो रही मासिक श्रीरामकथा में राजस्थान सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आये श्रद्धालु प्रतिदिन भाग ले रहे हैं,प्रभु श्रीराम के आदर्श,मर्यादा और भक्ति का अनुपम रसपान कर रहे हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि श्रीरामकथा,आख्यान नहीं,बल्कि जीवन का अमृत है। प्रभु श्रीराम जी का जीवन त्याग, करुणा,कर्तव्य और समर्पण का आदर्श है। उनके चरित्र से प्रेरणा लेकर जब माता-पिता अपने बच्चों को जीवन के मूल्य सिखाते हैं,तो परिवार संस्कारों की जीवंत पाठशाला बन जाता है।श्रीरामकथा केवल कथा नहीं,यह जीवन का दर्शन है। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में श्री रामकथा वह दीपक है जो परिवारों को जोड़ती है,संतुलन प्रदान करती है और एक ऐसा वातावरण रचती है जिसमें प्रेम,शांति और संस्कारों का अमृत प्रवाहित होता है। श्रीरामकथा में वह शक्ति है जो हमें परिवार से लेकर राष्ट्र तक की जिम्मेदारियों का बोध कराती है। यह आत्मबल और संस्कारों की पुनर्स्थापना का सबसे प्रभावशाली माध्यम है। अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि परिवार जीवन की पहली पाठशाला है,जहाँ बच्चे न केवल बोलना और चलना सीखते हैं,बल्कि प्रेम,करुणा,त्याग,सहयोग और संस्कारों की शिक्षा भी प्राप्त करते हैं। आज केवट जयंती के पावन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा,“केवट वह अद्भुत भक्त है जिसने प्रभु श्रीराम से कुछ माँगा नहीं,बल्कि स्वयं प्रभु को ही माँग लिया। उसने सेवा को साधना,समर्पण को भक्ति और प्रेम को परम धर्म बना दिया।”केवट की भक्ति हमें सिखाती है कि ईश्वर को पाने के लिए बाहरी साधनों की नहीं,बल्कि निर्मल हृदय,निष्कलंक सेवा और निष्काम प्रेम की आवश्यकता होती है।आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति बहुत गौरवशाली है और हम उस पावन संस्कृति के अनुगामी है। इस प्राचीन धरोहर को पूरे विश्व में पहंुचाने का अद्भुत कार्य पूज्य स्वामी जी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पूज्य संतों की तप ऊर्जा से ऊर्जावान है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की है।उन्होंने कहा कि अगर पूरा विश्व अपना परिवार न बने परन्तु अपना परिवार अपना बना रहे यही श्रीराम कथा से यह संदेश लेकर जाये। हम भगवान से मांगते हैं और केवट ने भगवान को मांगा था यही उनके अवतरण दिवस में हमारे अन्दर भी यह विश्वास,भाव व समर्पण हो इसके लिये हमें पात्र बनाना होगा। संत श्री मुरलीधर जी महाराज ने कथा के प्रथम दिवस पर कहा,श्रीराम जी ने अपने जीवन से हमें सिखाया कि धर्म क्या है,कर्तव्य क्या है और परिवार,समाज व राष्ट्र के प्रति हमारी भूमिका क्या होनी चाहिए।श्रीराम जी ने जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर प्रेम,त्याग और संयम का परिचय देते हुए आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण किया।चाहे वह पिता की आज्ञा का पालन हो,वनवास की कठिनाई,या रावण के आतंक का अंत हर चरण में श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सामने आते हैं। कथा का श्रवण करें,जीवन को नवीन ऊर्जा दें,और प्रभु राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
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