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सांस्कृतिक विरासत,पर्यावरण संरक्षण,प्रकृति प्रेम और हरियाली का प्रतीक हरेला पर्व

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने उत्तराखंड की पौराणिक संस्कृति का लोकपर्व हरेला की देशवासियों को शुभकामनायें देेेते हुये कहा कि हरेला पर्व, हरियाली और नई फसल के आगमन का प्रतीक है।हरेला हमें प्रेरणा देता है कि हम लौटें, धरती माँ की गोद में,पेड़ों की छाँव में,मिट्टी की महक में।यह पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत,पर्यावरणीय चेतना और प्रकृति प्रेम का अनुपम महोत्सव है।जो जीवन में हरियाली, समृद्धि और संतुलन का संदेश देता है। हरेला का अर्थ ही है‘हरियाली’,और यह पर्व वर्षा ऋतु के आरंभ में,श्रावण मास की संक्रांति को मनाया जाता है।उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विशेष रूप से मनाए जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड सहित पूरे भारत में भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा हैं।हरेला पर्व,मातृभूमि और धरती माता के प्रति सम्मान का पर्व है। यह प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को पुनर्स्थापित करने,धरती की उर्वरता को नमन करने और अपने पूर्वजों की परंपराओं को सम्मान देने का एक सुंदर अवसर है।इस पर्व के माध्यम से युवा पीढ़ी के लिये यह संदेश है कि हम सभी प्रकृति के अंश हैं और प्रकृति है तो ही हमारी संस्कृति व संतति हैं। हरेला के दिन घरों में सात प्रकार के अन्नों के बीजों को बोते हैं,जो नौ दिनों में अंकुरित होते हैं,इनको हरेला कहा जाता है।परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने शिक्षिकाओं और मातृशक्ति को पौधे भेंट कर पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संदेश दिया।उन्होंने सभी को एक पौधा माँ के नाम और एक पौधा धरती माँ के नाम रोपित करने का संकल्प कराया।स्वामी जी ने कहा कि हरेला पर्व,पर्यावरण जागरूकता का आंदोलन है।यदि हर नागरिक एक-एक पौधा रोपे और उसका पालन-पोषण अपने बच्चों की तरह करे,तो धरती फिर से हरी-भरी हो सकती है। हमारी संस्कृति में प्रकृति को देवता माना गया है और हरेला पर्व इस भावना को और भी सशक्त करता है।हम सब मिलकर हरेला को हरित जीवन और हरित भविष्य की ओर एक पवित्र पहल बनाएं। हरेला मनाएं,पौधे लगाएं, धरती को हरियाली से सजाएं।

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