शास्त्र केवल गुरुकुलों की परंपरा तक सीमित नहीं है,यह समाज के लिए मार्गदर्शक शक्ति
हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय तृतीय राष्ट्रीय स्वर्णशलाका प्रतियोगिता का भव्य शुभारंभ हुआ।दो दिवसीय इस शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में देश के कोने-कोने से पधारे 141प्रतिभागियों सहित प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वानों एवं शास्त्रज्ञों ने भाग लिया। इस आयोजन में दिल्ली,हरियाणा,उत्तराखंड,असम,झारखंड,उत्तर प्रदेश,कर्नाटक समेत अनेक राज्यों से संस्कृत साहित्य में निपुण विद्वानों एवं विद्यार्थियों ने अपनी विद्वता का परिचय दिया। प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय परंपरा के गहन विमर्शों को पुनर्जीवित करना था। मंच पर प्रतिभागियों ने अष्टाध्यायी,श्रीमद्भगवद्गीता,नवोपनिषद, चाणक्य नीति ,हठयोग प्रदीपिका,अष्टावक्रगीता,अष्टांगहृदयम,बृहदारण्यक-छान्दोग्योपनिषद,योगदर्शन,ईश-केनोपनिषद जैसे महान शास्त्रों पर गहन वाक्यार्थ और शास्त्रार्थ प्रस्तुत किए। इन प्रस्तुतियों ने न केवल शास्त्रीय ज्ञान का प्रदर्शन किया,बल्कि वैदिक संवाद संस्कृति को भी सजीव कर दिया। पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति योगऋषि स्वामी रामदेव ने कहा कि शास्त्र और सनातन परंपरा मनुष्य के नेतृत्व विकास और जीवन की दिशा निर्धारण में सहायक हैं। शास्त्र स्मरण से सद्गुणों की प्राप्ति होती है और इससे जीवन में आनंद की अनुभूति होती है। उन्होंने इस प्रतियोगिता को आध्यात्मिक पुनर्चिंतन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया। स्वामी रामदेव ने कहा कि पतंजलि विश्वविद्यालय,आचार्यकुलम और भारतीय शिक्षा बोर्ड मिलकर यह सिद्ध कर रहे हैं कि शास्त्र केवल गुरुकुलों की परंपरा तक सीमित नहीं है,यह समाज के लिए मार्गदर्शक शक्ति है।पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने प्रतियोगिता में उपस्थित सभी अतिथियों,वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि शास्त्रश्रवण से पुण्य की प्राप्ति होती है और यह व्यक्ति के अंदर आत्मिक बल का संचार करता है। उन्होंने विद्यार्थियों से सनातन परंपरा के अनुकरण का आग्रह करते हुए इसे मानविक विकास और समाज की समृद्धि का पथ बताया। तृतीय राष्ट्रीय स्वर्णशलाका प्रतियोगिता ने ज्ञान,संवाद और आध्यात्मिक चेतना की एक नई धारा प्रवाहित की,जो निस्संदेह भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।मंच पर उपस्थित प्रमुख शास्त्रज्ञों में प्रो.दिनेश चंद्र शास्त्री, आचार्य भवेंद्र,प्रो.ब्रजभूषण ओझा,प्रो.भोला झा,प्रो.मनोहर लाल आर्य,प्रो.विजयपाल प्रचेता,प्रो.बलवीर आचार्य,प्रो.मुरली कृष्णा,प्रो.शिवानी,प्रो.मधुकेश्वर भट्ट,डॉ.एन.पी.सिंह,डॉ.साध्वी देवप्रिया आदि शामिल रहे। इसके अतिरिक्त पतंजलि विश्वविद्यालय और इसके सहयोगी संस्थानों-पंतजलि रिसर्च फाउंडेशन,पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज,आचार्यकुलम,पतंजलि योगपीठ (फेज-1 एवं फेज-2) से जुड़े अनेक विद्वान,अधिकारीगण,संकायाध्यक्ष,विभागाध्यक्ष और छात्र-छात्राएं इस कार्यक्रम में शामिल हुए।इनमें प्रमुख रूप से प्रो.मयंक कुमार अग्रवाल,डॉ.ऋतंभरा,बहन आशु,बहन पारुल ,ब्रिगेडियर टीएस मल्होत्रा,प्रो.केएनएस यादव,डॉ.अनुराग वार्ष्णेय,डॉ.वेदप्रिया आर्या,डॉ.अनिल कुमार,डॉ.जयदीप आर्या,डॉ.राकेश मित्तल,डॉ.स्वाति,साध्वी देवमयी,स्वामी परमार्थदेव,स्वामी आर्षदेव आदि सम्मिलित थे। कल इस प्रतियोगिता के समापन समारोह में शास्त्रार्थ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित कर पारितोषिक प्रदान किए जाएंगे।
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