ऋषिकेश। आज पूरी दुनिया विश्व मानवता दिवस मना रहा है।यह दिन हमें उन महानायकों की याद दिलाता है,जो संकट के समय अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद करते हैं। यह दिन एक स्मृति है,एक आह्वान है,करुणा के साथ जीने का,सेवा को अपनाने का और एकता को धर्म बनाने का।भारतीय सनातन संस्कृति का मूल मंत्र है“वसुधैव कुटुम्बकम”।जब दुनिया हिंसा,युद्ध और जलवायु संकट से जूझ रही है,तब यह मंत्र पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है और हमें याद दिलाता है कि धरती एक परिवार है और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।करुणा,सेवा और एकता,ये केवल तीन शब्द नहीं बल्कि आदर्श हैं और मानवता का आधार हैं। करुणा हमें सिखाती है कि दूसरों का दुख देखकर संवेदना से भर उठें और उनकी पीड़ा को अपना समझें।सेवा हमें यह मार्ग दिखाती है कि केवल शब्दों से नहीं,बल्कि कर्मों से समाज का सहारा बनें और एकता हमें यह संदेश देती है कि सीमाओं,भाषाओं और धर्मों से परे जाकर एक साझा परिवार की तरह जिएँ।असली परिवर्तन तभी संभव है जब वैश्विक सहयोग और स्थानीय नेतृत्व एक साथ कदम मिलाएँ।यदि केवल बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन ही प्रयास करें और जमीनी स्तर पर समुदाय भागीदार न बनें,तो मानवीय कार्य अधूरा रह जाता है।यदि केवल स्थानीय समुदाय प्रयास करें लेकिन उन्हें संसाधन और सहयोग न मिले,तो उनकी क्षमता सीमित रह जाती है।मानवता का सच्चा रूप तभी सामने आता है जब वैश्विक और स्थानीय दोनों शक्तियाँ मिलकर एक साझा संकल्प के साथ कार्य करती हैं।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि विश्व मानवता दिवस हमें झकझोरता है कि हम अपने-अपने जीवन में छोटी-छोटी सेवाओं के माध्यम से एक बेहतर दुनिया बना सकते हैं।किसी भूखे को भोजन देना ,निराश को सहारा देना,आपदा में पीड़ितों की मदद करना,ये सब कदम उस वैश्विक आंदोलन का हिस्सा हैं,जिसे मानवता कहते हैं।मानवता दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि नायक वे होते हैं,जो संकट में भोजन,जल और आशा लेकर पहुँचते हैं।स्वामी जी ने कहा कि करुणा की कोई सीमा नहीं होती और प्रेम ही वह शक्ति है,जो हर अंधकार को प्रकाश में बदल सकता है।यह न भाषा देखती है,न धर्म,न रंग,न भूगोल।जब हृदय में करुणा जागती है तो वह हर दर्द को अपना बना लेती है और हर आँसू को पोंछने का संकल्प लेती है।प्रेम ही वह दिव्य शक्ति है,जो सबसे गहरे अंधकार को भी प्रकाश में बदल देती है।नफरत जहाँ दीवारें खड़ी करती है,वहीं प्रेम उन दीवारों को तोड़कर पुल बनाता है।यही प्रेम और करुणा मिलकर मानवता को सशक्त बनाते हैं। युवा पीढ़ी इस आंदोलन की सबसे बड़ी आशा है। यदि उनकी ऊर्जा और रचनात्मकता करुणा और सेवा की ओर प्रवाहित हो,तो दुनिया बदल सकती है।
ऋषिकेश। आज पूरी दुनिया विश्व मानवता दिवस मना रहा है।यह दिन हमें उन महानायकों की याद दिलाता है,जो संकट के समय अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद करते हैं। यह दिन एक स्मृति है,एक आह्वान है,करुणा के साथ जीने का,सेवा को अपनाने का और एकता को धर्म बनाने का।भारतीय सनातन संस्कृति का मूल मंत्र है“वसुधैव कुटुम्बकम”।जब दुनिया हिंसा,युद्ध और जलवायु संकट से जूझ रही है,तब यह मंत्र पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है और हमें याद दिलाता है कि धरती एक परिवार है और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।करुणा,सेवा और एकता,ये केवल तीन शब्द नहीं बल्कि आदर्श हैं और मानवता का आधार हैं। करुणा हमें सिखाती है कि दूसरों का दुख देखकर संवेदना से भर उठें और उनकी पीड़ा को अपना समझें।सेवा हमें यह मार्ग दिखाती है कि केवल शब्दों से नहीं,बल्कि कर्मों से समाज का सहारा बनें और एकता हमें यह संदेश देती है कि सीमाओं,भाषाओं और धर्मों से परे जाकर एक साझा परिवार की तरह जिएँ।असली परिवर्तन तभी संभव है जब वैश्विक सहयोग और स्थानीय नेतृत्व एक साथ कदम मिलाएँ।यदि केवल बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन ही प्रयास करें और जमीनी स्तर पर समुदाय भागीदार न बनें,तो मानवीय कार्य अधूरा रह जाता है।यदि केवल स्थानीय समुदाय प्रयास करें लेकिन उन्हें संसाधन और सहयोग न मिले,तो उनकी क्षमता सीमित रह जाती है।मानवता का सच्चा रूप तभी सामने आता है जब वैश्विक और स्थानीय दोनों शक्तियाँ मिलकर एक साझा संकल्प के साथ कार्य करती हैं।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि विश्व मानवता दिवस हमें झकझोरता है कि हम अपने-अपने जीवन में छोटी-छोटी सेवाओं के माध्यम से एक बेहतर दुनिया बना सकते हैं।किसी भूखे को भोजन देना ,निराश को सहारा देना,आपदा में पीड़ितों की मदद करना,ये सब कदम उस वैश्विक आंदोलन का हिस्सा हैं,जिसे मानवता कहते हैं।मानवता दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि नायक वे होते हैं,जो संकट में भोजन,जल और आशा लेकर पहुँचते हैं।स्वामी जी ने कहा कि करुणा की कोई सीमा नहीं होती और प्रेम ही वह शक्ति है,जो हर अंधकार को प्रकाश में बदल सकता है।यह न भाषा देखती है,न धर्म,न रंग,न भूगोल।जब हृदय में करुणा जागती है तो वह हर दर्द को अपना बना लेती है और हर आँसू को पोंछने का संकल्प लेती है।प्रेम ही वह दिव्य शक्ति है,जो सबसे गहरे अंधकार को भी प्रकाश में बदल देती है।नफरत जहाँ दीवारें खड़ी करती है,वहीं प्रेम उन दीवारों को तोड़कर पुल बनाता है।यही प्रेम और करुणा मिलकर मानवता को सशक्त बनाते हैं। युवा पीढ़ी इस आंदोलन की सबसे बड़ी आशा है। यदि उनकी ऊर्जा और रचनात्मकता करुणा और सेवा की ओर प्रवाहित हो,तो दुनिया बदल सकती है।
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