ऋषिकेश। अगाध प्रेम और अकाट्य समर्पण की सलिल सरिता श्री राधा रानी प्रेम की वह अनंत धारा हैं,जो भौतिकता की सीमाओं को लाँघकर आत्मा को परमात्मा से जोड़ती हैं।उनका समर्पण केवल श्रीकृष्ण जी के प्रति ही नहीं,बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति आदर्श प्रस्तुत करता है। उनका जीवन संदेश देता हैं कि प्रेम कोई लेन-देन नहीं है,बल्कि एक निःस्वार्थ भाव है जिसमें समर्पण है,करुणा है और माधुर्य है।श्री राधा जी के बिना श्रीकृष्ण अधूरे हैं और श्री कृष्ण बिना राधा जी। यही भाव भक्ति की गहराई को प्रकट करता है। श्रीमद्भागवत महापुराण, गीता और भक्ति-साहित्य में श्रीराधा जी का स्मरण,प्रेम और भक्ति के शिखर रूप में होता आया है। संत सूरदासजी,मीराबाई,रसखान और अन्य कवियों ने राधा-कृष्ण लीला को मानव-जीवन की आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक के रूप में वर्णन किया है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि श्रीराधा रानी का जीवन हमें संदेश देते है कि जब तक हमारे हृदय में अहंकार का स्थान है,तब तक वास्तविक प्रेम संभव नहीं।राधा जी ने अपने अस्तित्व को श्री कृष्ण में विलीन कर दिया। यही आत्मसमर्पण का आदर्श है,जो आज के समय में भी हमें मार्गदर्शन देता है। जब मनुष्य अपने कर्तव्यों,अपने कर्म और अपनी निष्ठा को ईश्वर को समर्पित करता है,तभी जीवन का सार्थकता से भर जाता है।स्वामी जी ने कहा कि राधा जी का प्रेम केवल मानवीय स्तर पर नहीं,बल्कि ब्रह्मांडीय स्तर पर भी हमें जोड़ता है।आज के तनावग्रस्त जीवन में प्रतिस्पर्धा, अहंकार और स्वार्थ के कारण समाज बिखर रहा है।ऐसे में राधा का निःस्वार्थ प्रेम और करुणा हमें पुनःएकजुट करने की क्षमता रखता है।स्वामी जी ने भारत के 13वें राष्ट्रपति,भारत रत्न स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि राष्ट्र निर्माण और भारत की लोकतांत्रिक परंपरा में उनका योगदान सदैव स्मरणीय और प्रेरणादायी रहेगा।
ऋषिकेश। अगाध प्रेम और अकाट्य समर्पण की सलिल सरिता श्री राधा रानी प्रेम की वह अनंत धारा हैं,जो भौतिकता की सीमाओं को लाँघकर आत्मा को परमात्मा से जोड़ती हैं।उनका समर्पण केवल श्रीकृष्ण जी के प्रति ही नहीं,बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति आदर्श प्रस्तुत करता है। उनका जीवन संदेश देता हैं कि प्रेम कोई लेन-देन नहीं है,बल्कि एक निःस्वार्थ भाव है जिसमें समर्पण है,करुणा है और माधुर्य है।श्री राधा जी के बिना श्रीकृष्ण अधूरे हैं और श्री कृष्ण बिना राधा जी। यही भाव भक्ति की गहराई को प्रकट करता है। श्रीमद्भागवत महापुराण, गीता और भक्ति-साहित्य में श्रीराधा जी का स्मरण,प्रेम और भक्ति के शिखर रूप में होता आया है। संत सूरदासजी,मीराबाई,रसखान और अन्य कवियों ने राधा-कृष्ण लीला को मानव-जीवन की आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक के रूप में वर्णन किया है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि श्रीराधा रानी का जीवन हमें संदेश देते है कि जब तक हमारे हृदय में अहंकार का स्थान है,तब तक वास्तविक प्रेम संभव नहीं।राधा जी ने अपने अस्तित्व को श्री कृष्ण में विलीन कर दिया। यही आत्मसमर्पण का आदर्श है,जो आज के समय में भी हमें मार्गदर्शन देता है। जब मनुष्य अपने कर्तव्यों,अपने कर्म और अपनी निष्ठा को ईश्वर को समर्पित करता है,तभी जीवन का सार्थकता से भर जाता है।स्वामी जी ने कहा कि राधा जी का प्रेम केवल मानवीय स्तर पर नहीं,बल्कि ब्रह्मांडीय स्तर पर भी हमें जोड़ता है।आज के तनावग्रस्त जीवन में प्रतिस्पर्धा, अहंकार और स्वार्थ के कारण समाज बिखर रहा है।ऐसे में राधा का निःस्वार्थ प्रेम और करुणा हमें पुनःएकजुट करने की क्षमता रखता है।स्वामी जी ने भारत के 13वें राष्ट्रपति,भारत रत्न स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि राष्ट्र निर्माण और भारत की लोकतांत्रिक परंपरा में उनका योगदान सदैव स्मरणीय और प्रेरणादायी रहेगा।
Comments
Post a Comment