ऋषिकेश।भारत की संस्कृति और अर्थव्यवस्था दोनों ही लघु उद्योगों के योगदान से आलोकित हैं।गाँव-गाँव में बुनकर,कुम्हार,बढ़ई,लोहार,हस्तशिल्पी,सूक्ष्म उद्योग चलाने वाले परिवार मिलकर स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं,इनके अथक परिश्रम,संकल्प और सृजनशीलता से भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ और आत्मनिर्भर बन रही है।वे हमारी परंपराओं और विरासत को भी जीवित रखते हैं।लघु उद्योग हमारे राष्ट्र की रीढ़ है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि लघु उद्योग केवल आर्थिक गतिविधि का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने का साकार स्वरूप हैं।जब प्रत्येक हाथ को काम मिलेगा,तब हर घर में खुशहाली और हर हृदय में संतोष होगा।लघु उद्योग अपने श्रम और कौशल से न केवल परिवारों को सहारा देते हैं,बल्कि पूरे राष्ट्र को भी सशक्त बनाते हैं।लघु उद्योग,रोजगार और आजीविका का सबसे बड़ा साधन हैं। ये उद्योग युवाओं को अवसर देते हैं,महिलाओं को सशक्त बनाते हैं, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं। भारत में मेहनत और माटी से जुड़े ये उद्योग आत्मनिर्भरता के सूत्रधार हैं।स्वामी जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में ‘कर्मयोग’ का महत्वपूर्ण योगदान है।लघु उद्योग और हस्तशिल्प उसी कर्मयोग की व्यावहारिक अभिव्यक्ति हैं।एक बुनकर जब करघे पर वस्त्र बुनता है,एक कुम्हार जब चाक पर घड़ा गढ़ता है,या कोई शिल्पकार जब लकड़ी या पत्थर पर कला उकेरता है,तो वह केवल वस्तु का निर्माण नहीं करता,बल्कि भारत की आत्मा और संस्कृति को साकार करता है।लघु उद्योगों की यह शक्ति ही भारत को वोकल फॉर लोकल का मंत्र देती है।आज समय की माँग है कि हम स्थानीय उत्पादों का सम्मान करें,उन्हें खरीदें और बढ़ावा दें।हर भारतीय जब स्वदेशी उत्पाद को अपनाता है,तो वह न केवल एक कारीगर की मेहनत को सम्मान देता है,बल्कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। स्वामी जी ने कहा कि लघु उद्योग दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि राष्ट्रनिर्माण केवल बड़े उद्योगों या तकनीकी विकास से ही नहीं होता, बल्कि छोटे-छोटे हाथों के परिश्रम और छोटे-छोटे उद्योगों के संकल्प से भी होता है। हमें हर कारीगर और उद्यमी को सम्मान देना चाहिए,क्योंकि उनका पसीना ही भारत की समृद्धि का बीज है।आज आवश्यकता है कि सरकार,समाज और प्रत्येक नागरिक मिलकर लघु उद्योगों को सहयोग दें।प्रशिक्षण,तकनीक,वित्तीय सहायता और विपणन की सुविधाएँ देकर हम इस क्षेत्र को और अधिक मजबूत बना सकते हैं।यदि हम गाँव-गाँव में बने उत्पादों को वैश्विक बाजार से जोड़ें,तो भारत,पूरी दुनिया में सस्टेनेबल और एथिकल प्रोडक्शन का नेतृत्व कर सकता है।लघु उद्योग दिवस हमें यह भी प्रेरणा देता है कि हम उपभोक्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाएँ।
ऋषिकेश।भारत की संस्कृति और अर्थव्यवस्था दोनों ही लघु उद्योगों के योगदान से आलोकित हैं।गाँव-गाँव में बुनकर,कुम्हार,बढ़ई,लोहार,हस्तशिल्पी,सूक्ष्म उद्योग चलाने वाले परिवार मिलकर स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं,इनके अथक परिश्रम,संकल्प और सृजनशीलता से भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ और आत्मनिर्भर बन रही है।वे हमारी परंपराओं और विरासत को भी जीवित रखते हैं।लघु उद्योग हमारे राष्ट्र की रीढ़ है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि लघु उद्योग केवल आर्थिक गतिविधि का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने का साकार स्वरूप हैं।जब प्रत्येक हाथ को काम मिलेगा,तब हर घर में खुशहाली और हर हृदय में संतोष होगा।लघु उद्योग अपने श्रम और कौशल से न केवल परिवारों को सहारा देते हैं,बल्कि पूरे राष्ट्र को भी सशक्त बनाते हैं।लघु उद्योग,रोजगार और आजीविका का सबसे बड़ा साधन हैं। ये उद्योग युवाओं को अवसर देते हैं,महिलाओं को सशक्त बनाते हैं, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं। भारत में मेहनत और माटी से जुड़े ये उद्योग आत्मनिर्भरता के सूत्रधार हैं।स्वामी जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में ‘कर्मयोग’ का महत्वपूर्ण योगदान है।लघु उद्योग और हस्तशिल्प उसी कर्मयोग की व्यावहारिक अभिव्यक्ति हैं।एक बुनकर जब करघे पर वस्त्र बुनता है,एक कुम्हार जब चाक पर घड़ा गढ़ता है,या कोई शिल्पकार जब लकड़ी या पत्थर पर कला उकेरता है,तो वह केवल वस्तु का निर्माण नहीं करता,बल्कि भारत की आत्मा और संस्कृति को साकार करता है।लघु उद्योगों की यह शक्ति ही भारत को वोकल फॉर लोकल का मंत्र देती है।आज समय की माँग है कि हम स्थानीय उत्पादों का सम्मान करें,उन्हें खरीदें और बढ़ावा दें।हर भारतीय जब स्वदेशी उत्पाद को अपनाता है,तो वह न केवल एक कारीगर की मेहनत को सम्मान देता है,बल्कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। स्वामी जी ने कहा कि लघु उद्योग दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि राष्ट्रनिर्माण केवल बड़े उद्योगों या तकनीकी विकास से ही नहीं होता, बल्कि छोटे-छोटे हाथों के परिश्रम और छोटे-छोटे उद्योगों के संकल्प से भी होता है। हमें हर कारीगर और उद्यमी को सम्मान देना चाहिए,क्योंकि उनका पसीना ही भारत की समृद्धि का बीज है।आज आवश्यकता है कि सरकार,समाज और प्रत्येक नागरिक मिलकर लघु उद्योगों को सहयोग दें।प्रशिक्षण,तकनीक,वित्तीय सहायता और विपणन की सुविधाएँ देकर हम इस क्षेत्र को और अधिक मजबूत बना सकते हैं।यदि हम गाँव-गाँव में बने उत्पादों को वैश्विक बाजार से जोड़ें,तो भारत,पूरी दुनिया में सस्टेनेबल और एथिकल प्रोडक्शन का नेतृत्व कर सकता है।लघु उद्योग दिवस हमें यह भी प्रेरणा देता है कि हम उपभोक्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाएँ।
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