ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में भगवान विष्णु के पंचम अवतार,भगवान श्रीवामन जी की जयंती श्रद्धा,उत्साह और आध्यात्मिक भक्ति भाव के साथ मनायी।यह पावन दिन हमें स्मरण कराता है कि जीवन की सच्ची शक्ति बाहरी वैभव,पद या सामर्थ्य में नहीं,बल्कि विनम्रता,धर्म और समर्पण में है। भगवान वामन जी का अवतरण त्रेता युग में हुआ,जब असुरराज बलि ने अपने सामर्थ्य और दानशीलता के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था।देवगण असुरों के बढ़ते प्रभाव से व्याकुल थे और धर्म की रक्षा हेतु भगवान विष्णु जी ने वामन रूप धारण किया। वामन जी ने एक साधारण ब्राह्मण बालक का रूप लिया और असुरराज बलि से यज्ञ के अवसर पर तीन पग भूमि माँगी।बलि ने अपने वचन को निभाते हुए तीन पग भूमि देने का संकल्प किया,तभी भगवान वामन ने विराट स्वरूप धारण कर लिया और एक पग में पृथ्वी,दूसरे पग में आकाश और तीसरे पग में स्वयं बलि का अहंकार समेट लिया।यह प्रसंग केवल एक पौराणिक कथा नहीं,बल्कि एक शाश्वत संदेश है कि ईश्वर की योजना और धर्म की व्यवस्था के आगे अहंकार,अन्याय और असत्य कभी स्थायी नहीं रह सकते। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि अहंकार मनुष्य के पतन का कारण है और विनम्रता मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है। भगवान वामन का दिव्य स्वरूप हमें याद दिलाता है कि छोटे से छोटे कार्यों को भी यदि धर्म और ईमानदारी से किया जाए,तो वह महान बन जाता है।स्वामी जी ने कहा कि वामन जयंती हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का उत्सव है।आधुनिक समय में जब भौतिकता और स्वार्थ बढ़ रहा है,वामन अवतार का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है।हमें स्मरण रखना होगा कि समाज और राष्ट्र की उन्नति केवल बाहरी विकास से नहीं होती,बल्कि चरित्र,संस्कार और धर्म के पालन से होती है।यदि हम विनम्रता,धर्मनिष्ठा और सेवा भाव को अपने जीवन का अंग बना लें,तो परिवार,समाज और देश में समरसता और शांति स्थापित होगी।
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में भगवान विष्णु के पंचम अवतार,भगवान श्रीवामन जी की जयंती श्रद्धा,उत्साह और आध्यात्मिक भक्ति भाव के साथ मनायी।यह पावन दिन हमें स्मरण कराता है कि जीवन की सच्ची शक्ति बाहरी वैभव,पद या सामर्थ्य में नहीं,बल्कि विनम्रता,धर्म और समर्पण में है। भगवान वामन जी का अवतरण त्रेता युग में हुआ,जब असुरराज बलि ने अपने सामर्थ्य और दानशीलता के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था।देवगण असुरों के बढ़ते प्रभाव से व्याकुल थे और धर्म की रक्षा हेतु भगवान विष्णु जी ने वामन रूप धारण किया। वामन जी ने एक साधारण ब्राह्मण बालक का रूप लिया और असुरराज बलि से यज्ञ के अवसर पर तीन पग भूमि माँगी।बलि ने अपने वचन को निभाते हुए तीन पग भूमि देने का संकल्प किया,तभी भगवान वामन ने विराट स्वरूप धारण कर लिया और एक पग में पृथ्वी,दूसरे पग में आकाश और तीसरे पग में स्वयं बलि का अहंकार समेट लिया।यह प्रसंग केवल एक पौराणिक कथा नहीं,बल्कि एक शाश्वत संदेश है कि ईश्वर की योजना और धर्म की व्यवस्था के आगे अहंकार,अन्याय और असत्य कभी स्थायी नहीं रह सकते। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि अहंकार मनुष्य के पतन का कारण है और विनम्रता मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है। भगवान वामन का दिव्य स्वरूप हमें याद दिलाता है कि छोटे से छोटे कार्यों को भी यदि धर्म और ईमानदारी से किया जाए,तो वह महान बन जाता है।स्वामी जी ने कहा कि वामन जयंती हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का उत्सव है।आधुनिक समय में जब भौतिकता और स्वार्थ बढ़ रहा है,वामन अवतार का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है।हमें स्मरण रखना होगा कि समाज और राष्ट्र की उन्नति केवल बाहरी विकास से नहीं होती,बल्कि चरित्र,संस्कार और धर्म के पालन से होती है।यदि हम विनम्रता,धर्मनिष्ठा और सेवा भाव को अपने जीवन का अंग बना लें,तो परिवार,समाज और देश में समरसता और शांति स्थापित होगी।
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