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प्रकृति के साथ सामंजस्य ही जीवन का मूल मंत्र-स्वामी चिदानन्द सरस्वती


ऋषिकेश। भारत की भूमि विविधताओं से भरी हुई है। यहाँ का हर कोना, हर संस्कृति और हर उत्सव हमें संदेश देता है कि एकता केवल समानताओं से नहीं,बल्कि विविधताओं के सम्मान में ही समाहित है।करम पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं,बल्कि प्रकृति से गहरे जुड़ाव, भाई-बहन के पवित्र संबंध और श्रम व कृषि के महत्व का जीवंत प्रतीक है।इस दिन करम देवता की पूजा होती है।करम देवता,प्रकृति,हरियाली,समृद्धि और भाईचारे का प्रतीक है।पूजा का प्रार्थना की जाती है कि करम देवता ही धरती पर हरियाली लाते हैं,फसलों को समृद्धि देते हैं और परिवार की रक्षा करते हैं।इस पूजा का मुख्य आकर्षण होता है गांव या आँगन में करम वृक्ष की डाल का प्रतिष्ठापन करना।युवतियाँ उपवास रखकर गीत-नृत्य करती हैं,करम कथा का श्रवण होता है और सामूहिक उत्सव मनाया जाता है।यह जीवन में प्रकृति और परिवार के महत्व को पुनःजाग्रत करने का सामूहिक प्रयास है।करम पूजा हमें याद दिलाती है कि मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता केवल उपयोग,यूज एंड़ थ्रो का नहीं,बल्कि सहयोग,संरक्षण और यूज एंड ग्रो का होना चाहिए।जिस धरती से हम अन्न प्राप्त करते हैं,जिसकी हवा और जल हमें जीवन देते हैं,उसका संरक्षण करना ही सच्ची पूजा है।आज जब पूरी दुनिया पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझ रही है,तब आदिवासी समाज का यह पर्व हमें संदेश देता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य ही जीवन का मूल मंत्र है।करम पूजा का संदेश आधुनिक समय में और भी प्रासंगिक है।यह हमें प्रेरित करता है कि हम सब मिलकर जल,जंगल और जमीन की रक्षा करें। करम पूजा भाई-बहन के स्नेह और पारिवारिक बंधन को भी मजबूती देती है। यह पर्व बताता है कि समाज की सबसे बड़ी ताकत आपसी एकता और भाईचारा है। जब परिवार और समाज संगठित होते हैं,तभी राष्ट्र मजबूत बनता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत की यही खूबसूरती है,यहाँ हर समुदाय,हर संस्कृति और हर उत्सव राष्ट्र की आत्मा में अपनी विशिष्टता जोड़ता है।करम पूजा इस बात का सशक्त उदाहरण है कि भारत केवल एक भूगोल नहीं,बल्कि विविधताओं का उत्सव है। श्रम और कृषि का आदर करें क्योंकि यही हमारी अन्न-समृद्धि और आत्मनिर्भरता का आधार है। 

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