ऋषिकेश। आज का दिन शिक्षक दिवस अपने गुरुओं और शिक्षकों के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य पर्व है क्योंकि उन्होंने ही अपने ज्ञान,मूल्यों और दिशा से जीवन को आलोकित किया।शिक्षक दिवस भारत के पूर्व राष्ट्रपति,महान दार्शनिक और शिक्षाविद् भारत रत्न डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।शिक्षा,दर्शन और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान ने न केवल भारत को गौरवान्वित किया बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय चिंतन को प्रतिष्ठा दिलाई।डॉ.राधाकृष्णन जी ने कहा था,यदि मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए सम्मान की बात होगी।इसी भाव से 5 सितम्बर पूरे भारत में शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। डॉ.राधाकृष्णन जी के अनुसार शिक्षा केवल जीविकोपार्जन का साधन नहीं,बल्कि आत्म-विकास और राष्ट्र-निर्माण का आधार है।उन्होंने कहा था,शिक्षा का अर्थ है,वह जो हमें मनुष्य बनाती है।उनका मानना था कि शिक्षक केवल पुस्तकीय ज्ञान न देकर,विद्यार्थियों के भीतर नैतिकता,संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव भी जागृत करें।यही कारण है कि वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु को सदा सर्वाेच्च स्थान दिया गया है। वे ही जीवन के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीप जलाते हैं।गुरु को ब्रह्मा,विष्णु और महेश्वर की उपाधि दी गई है क्योंकि वे सृष्टि,पालन और परिवर्तन तीनों के प्रतीक हैं।शिक्षक भी ठीक उसी प्रकार समाज की नींव रखते हैं,संस्कारों का पोषण करते हैं और नई पीढ़ी को दिशा देते हैं। वे विद्यार्थियों को केवल अंक या प्रमाणपत्र तक सीमित न रखकर जीवन की कला,धैर्य, करुणा और सेवा जैसे मूल्य सिखाते हैं।राष्ट्र की प्रगति का मार्ग कक्षाओं,विद्यालयों,कॉलेजों और शिक्षकों से होकर निकलता है।यदि शिक्षक सशक्त और प्रेरणादायी होंगे,तो छात्र भी ऊँचाइयाँ छुएँगे।
ऋषिकेश। आज का दिन शिक्षक दिवस अपने गुरुओं और शिक्षकों के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य पर्व है क्योंकि उन्होंने ही अपने ज्ञान,मूल्यों और दिशा से जीवन को आलोकित किया।शिक्षक दिवस भारत के पूर्व राष्ट्रपति,महान दार्शनिक और शिक्षाविद् भारत रत्न डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।शिक्षा,दर्शन और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान ने न केवल भारत को गौरवान्वित किया बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय चिंतन को प्रतिष्ठा दिलाई।डॉ.राधाकृष्णन जी ने कहा था,यदि मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए सम्मान की बात होगी।इसी भाव से 5 सितम्बर पूरे भारत में शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। डॉ.राधाकृष्णन जी के अनुसार शिक्षा केवल जीविकोपार्जन का साधन नहीं,बल्कि आत्म-विकास और राष्ट्र-निर्माण का आधार है।उन्होंने कहा था,शिक्षा का अर्थ है,वह जो हमें मनुष्य बनाती है।उनका मानना था कि शिक्षक केवल पुस्तकीय ज्ञान न देकर,विद्यार्थियों के भीतर नैतिकता,संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव भी जागृत करें।यही कारण है कि वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु को सदा सर्वाेच्च स्थान दिया गया है। वे ही जीवन के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीप जलाते हैं।गुरु को ब्रह्मा,विष्णु और महेश्वर की उपाधि दी गई है क्योंकि वे सृष्टि,पालन और परिवर्तन तीनों के प्रतीक हैं।शिक्षक भी ठीक उसी प्रकार समाज की नींव रखते हैं,संस्कारों का पोषण करते हैं और नई पीढ़ी को दिशा देते हैं। वे विद्यार्थियों को केवल अंक या प्रमाणपत्र तक सीमित न रखकर जीवन की कला,धैर्य, करुणा और सेवा जैसे मूल्य सिखाते हैं।राष्ट्र की प्रगति का मार्ग कक्षाओं,विद्यालयों,कॉलेजों और शिक्षकों से होकर निकलता है।यदि शिक्षक सशक्त और प्रेरणादायी होंगे,तो छात्र भी ऊँचाइयाँ छुएँगे।
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